tag:blogger.com,1999:blog-52681301829287453902024-02-08T05:47:54.896-08:00उल्झे ख्याल ...Dabralhttp://www.blogger.com/profile/01163296598414061328noreply@blogger.comBlogger246125tag:blogger.com,1999:blog-5268130182928745390.post-6420381828480334402012-10-07T07:28:00.001-07:002012-10-07T07:28:25.954-07:00मिट्टी का तेल <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
चार साल के रहमत के लिए मिट्टी सबसे अज़ीब चीज़ थी। अपने सड़क के
किनारे के, बड़ी मुश्किल से घर की परिभाषा में आने वाले घर में, मिट्टी ही
सबसे ज़्यादा आने वाली मेहमान थी। उस "घर" में हर चीज़ पर मिट्टी ने अपनी
छाप छोड़ी थी, और पोंछ देने पर वह फिर जमने को अमादा थी।<br />
आज शाम घर का स्टोव खामोश था। उसके अब्बा की फिर से नौकरी चली
गयी थी| उसकी माँ, सर पर हाथ धरे, ढलते, लाल सूरज को अपनी लाल हो आई आँखों
से देख रही थी| कोसती भी तो किसको, हर बार, वह किस्मत को कोसकर देख चुकी
थी| अब सदाबहार चुप्पी ही उसकी तकदीर में लिख दी गयी थी|<br />
"मैं ज़रा बाहर हो कर आता हूँ, देखूं, शायद कोई तेल उधार दे दे|"
अब्बा को रहमत ने कहते हुए सुना| उसकी माँ ने हल्के से सर हिला दिया, बोली
कुछ नहीं| रहमत को यह लफ्ज़ "मिट्टी का तेल" समझ नहीं आया| माँ से बोला,"माँ, ये
अब्बा क्या कह रहे थे"? माँ बोली,"बेटा, मिट्टी का तेल, जो मिट्टी से
निकलता है, जिससे स्टोव चलेगा, खाना बनेगा!" रहमत को झटका लगा, इस मिट्टी
से तेल भी निकल सकता है! पर वह अपने मन ही मन सोचकर चुप रह गया| सुबह से
शाम तक वह मिट्टी में सना रहता है, उसके घर में मिट्टी की भरमार है, तो ये
लोग इससे तेल क्यों नहीं निकाल लेते?<br />
बाहर कुछ आवाज़ हुई, अब्बा को शौकत के भाई से तेल उधार मिल गया था|
तेल, एक रूहआफ्ज़ा की बोतल में लाकर अन्दर रख दिया गया| रहमत के लिए ये एक
अजूबा था, मिट्टी का तेल! अलग अलग ख्याल उसके मन में आने लगे| फिर वह बोतल
लेकर तेल को सारे घर के कच्चे फर्श पर गिराने लगा| उसकी माँ ने देखा,
चिल्लाई,"अरे ये क्या कर रहा है रहमत?" बोला ,"माँ, मिट्टी का तेल है ना,
अपनी मिट्टी में वापिस डाल रहा हूँ| अब हमेशा यहीं से निकालूँगा, हमें कभी
माँगना नहीं पड़ेगा!"<br />
उसकी माँ से कुछ बोले ना बना, दो सूखे से आँसू उसके कोरे गालों से
ढुलक गए| मासूमियत और अपनी तकदीर को कोसने के बीच का रास्ता चुनना बहुत
मुश्किल था| उधर रहमत ऐसे तेल छिड़कता जा रहा था जैसे अपना खेत सींच रहा
हो, आखिर वह मिट्टी का तेल ही तो था!<br />
- अक्षत डबराल <br />
<br />
</div>
Dabralhttp://www.blogger.com/profile/01163296598414061328noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5268130182928745390.post-17464614063990542502012-10-02T06:26:00.001-07:002012-10-02T06:26:48.367-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मुझमें और मंजिल में,अभी बहुत फासला है|<br />
चार कदम की दूरी नहीं|<br />
चलना ही है धर्मं मेरा, पर, हाँ मेरी मजबूरी नहीं|<br />
मंजिल तक पहुंचूंगा ही, ऐसा भी ज़रूरी नहीं|<br />
पर कदम बढाए बिना, तपस्या भी पूरी नहीं|<br />
ऐश करना फितरत नहीं, सिफारिश मेरी सीढ़ी नहीं|<br />
दौलत की है अंधी दौड़, पर मैं उसकी पीढ़ी नहीं|<br />
- अक्षत डबराल </div>
Dabralhttp://www.blogger.com/profile/01163296598414061328noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5268130182928745390.post-25975944391007339672012-09-30T00:22:00.002-07:002012-09-30T00:22:38.391-07:00मैंने ज़िन्दगी को नहीं जिया, ज़िन्दगी ने मुझे जिया है|<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span class="userContent">मैंने ज़िन्दगी को नहीं जिया, ज़िन्दगी ने मुझे जिया है|<br /> जो कुछ किया इसने किया, मैंने कहाँ कुछ किया है?<br /> अपने अरमाँ निकालने को इसने, मुक़द्दर का सहारा लिया है|<br /> <br /> हर चीज़ के पीछे है यही, पर नाम हमारा लिया है|<br /> ले लेकर लम्हों के धागे, इस तस्वीर को सिया है|<br /> मैंने ज़िन्दगी को नहीं जिया, ज़िन्दगी ने मुझे जिया है|<br /> <br /> हल्का ही है नशा, पर हाँ मैंने किया है|<br /> मैंने तो बस इसे चखा है, पर इसने तो मुझे पिया है|<br /> मैंने ज़िन्दगी को नहीं जिया, ज़िन्दगी ने मुझे जिया है|<br /> - अक्षत डबराल</span></div>
Dabralhttp://www.blogger.com/profile/01163296598414061328noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5268130182928745390.post-86834685027817914372012-09-30T00:21:00.003-07:002012-09-30T00:21:57.971-07:00आईने सा <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span class="userContent">आईने सा दोस्त कहाँ,<br /> जो मुँह पर सच बोलता हो ?<br /> आईने सा जौहरी कहाँ,<br /> जो आदमी का वज़ूद तोलता हो ?<br /> आईने सा मुखबिर कहाँ,<br /> जो मन के राज़ खोलता हो ?<br /> और आईने सा उस्ताद कहाँ,<br /> जो आँखों के पर्दे टटोलता हो ?<br /> - अक्षत डबराल</span></div>
Dabralhttp://www.blogger.com/profile/01163296598414061328noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5268130182928745390.post-48884907857879168392012-09-30T00:20:00.002-07:002012-09-30T00:20:52.288-07:00आसमाँ को देखा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span class="userContent">आसमाँ को देखा, पूछा,<br /> तुम उंचाई से थकते नहीं हो?<br /> बोला, मैं कहाँ ऊँचा हूँ,<br /> तुम्हीं मुझे नीचे रखते नहीं हो|<br /> मैंने कहा, नीचे रख दें तो,<br /> हम सरहद किसको मानेंगे?<br /> जब उड़ने को मिल जाएँ पंख,<br /> हम मंज़िल किसको मानेंगे?<br /> बोला, इतना भी मैं दूर नहीं,<br /> कि उड़ने को जो पंख चाहिए|<br /><div class="text_exposed_show">
चाहिए तो बस तेज़ निगाह,<br /> और बुलंद हौसलों का संग चाहिए|<br /> - अक्षत डबराल</div>
</span></div>
Dabralhttp://www.blogger.com/profile/01163296598414061328noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5268130182928745390.post-69309455566690229672012-09-30T00:19:00.000-07:002012-09-30T00:19:23.827-07:00सुबह आती है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span class="userContent">फिर रात का साया है,<br /> आँखों पर कालिख लगाने आया है|<br /> नए, काले स्लेट पर दौड़ेगा ख्वाब,<br /> अपनी स्याही दवात ले,<br /> यहाँ तस्वीरें बनाने आया है|<br /> ज़ेहन की कूची है, अरमानों के रंग,<br /> खूब रहती रौनक यहाँ, इन सब के संग|<br /> रोज़ रात महफ़िल ज़मती है,<br /> रोके से ये कहाँ थमती है|<br /> सुबह आती है, वही महफ़िल से उठाती है,<br /> रात की कालिख, आँखों से पूँछ जाती है|<br /> - अक्षत डबराल</span></div>
Dabralhttp://www.blogger.com/profile/01163296598414061328noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5268130182928745390.post-2653939543058424422012-08-19T09:17:00.003-07:002012-08-19T09:17:45.719-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span class="userContent">Few years back i remember, <br /> i knew a boy,<br /> who was too shy.<br /> He won't say anything, <br /> and won't tell you why.<br /> You ask him something, <br /> his mouth will turn dry.<br /> He will be so feared, <br /> that he might soon cry.<br /> Today, i met him again,</span><br />
<div class="text_exposed_show">
when facing a mirror,<br /> i passed him by.<br /> I am surprised,<br /> to see that guy.<br /> For i never thought,<br /> that i will be, <br /> what today am I.<br /> <br /> - Akshat Dabral</div>
</div>
Dabralhttp://www.blogger.com/profile/01163296598414061328noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5268130182928745390.post-2878514099644248892012-08-19T09:15:00.001-07:002012-08-19T09:15:07.780-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
फिर ख्यालों से दिल्लगी की तबियत हुई,<br />
और हमने लफ़्ज़ों की डोर को थाम लिया|<br />
अब किसके रोके रुकेगा ये सफ़र,<br />
जब हमने मुसाफिर होना ही ठान लिया|<br />
चल गए, तो जल गए, थम गए तो ख़त्म हुए,<br />
हमने खुद को चिराग ही मान लिया|<br />
अब और क्या मिटाएगा वक़्त निशाँ हमारा,<br />
जब हमने खुद को ख़ाक ही मान लिया|<br />
- अक्षत डबराल<br />
"निःशब्द"<br />
</div>
Dabralhttp://www.blogger.com/profile/01163296598414061328noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5268130182928745390.post-68965766861013301132012-08-16T09:06:00.003-07:002012-08-16T09:06:46.437-07:00मुझे पारस बनना है!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
हर चीज़ को छू सोना कर दूँ,<br />
खुद में इतना साहस भरना है|<br />
भसम लगाकर मेहनत की,<br />
मुझे पारस बनना है!<br />
मेरा काम ही परिचय बने,<br />
नाम का क्या करना है?<br />
अब और नहीं उद्देश्य कोई,<br />
मुझे पारस बनना है!<br />
समय,प्रारब्ध के वार सहूँ,<br />
मैं उफ़ न एक बार कहूँ|<br />
मुझे खुद का आदर्श बनना है,<br />
मुझे पारस बनना है!<br />
-अक्षत डबराल<br />
"निःशब्द"</div>
Dabralhttp://www.blogger.com/profile/01163296598414061328noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5268130182928745390.post-73830314388089251782012-07-29T10:03:00.002-07:002012-07-29T10:03:24.969-07:00जब नैना हैं तो, ख्वाब भी होंगे|<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<h6 class="uiStreamMessage" data-ft="{"type":1,"tn":"K"}">
<span style="font-size: small;"><span class="messageBody" data-ft="{"type":3}">जब नैना हैं तो,<br /> ख्वाब भी होंगे|<br /> बसेंगे कुछ तो,<br /> कुछ बर्बाद भी होंगे|<br /> दिल में रहेंगे कुछ कैद तो,<br /><span class="text_exposed_show"> कुछ आज़ाद भी होंगे|<br /> राह में बिछड़ेंगे कुछ तो,<br /> कुछ उम्रभर साथ भी होंगे|<br /> इंसां की फितरत है ख्वाब सज़ाना,<br /> ये आज हैं, मुद्दतों बाद भी होंगे|<br /> जब नैना हैं तो,<br /> ख्वाब भी होंगे!<br /> <br /> -अक्षत डबराल<br /> "निःशब्द"</span></span></span></h6>
</div>Dabralhttp://www.blogger.com/profile/01163296598414061328noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5268130182928745390.post-31951195889905803382012-07-24T08:58:00.005-07:002012-07-24T08:58:50.553-07:00हम क्यूँ हाथ जोड़ना भूल गए ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
इतना क्यों ऊपर उठे कि,<br />
खुद को धरती से जोड़ना भूल गए ?<br />
सर उठाना तो याद रहा पर,<br />
हम क्यूँ हाथ जोड़ना भूल गए ?<br />
जंजीरों को तो तोड़ा हमने पर,<br />
क्यूँ दीवारें तोड़ना भूल गए ?<br />
आँख मिलाना रास रहा पर,<br />
हम क्यूँ हाथ जोड़ना भूल गए ?<br />
रिश्तों के लिए क्यूँ अब हम,<br />
मौसमों को मोड़ना भूल गए ?<br />
आज भी दुखता है मन कि,<br />
हम क्यूँ हाथ जोड़ना भूल गए ?<br />
- अक्षत डबराल<br />
"निःशब्द"<br />
<br />
</div>
Dabralhttp://www.blogger.com/profile/01163296598414061328noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5268130182928745390.post-11146286816114816992012-07-13T09:31:00.002-07:002012-07-13T09:31:32.758-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<h6 class="uiStreamMessage" data-ft="{"type":1,"tn":"K"}">
<span style="font-size: small;"><span class="messageBody" data-ft="{"type":3}">एक एक लम्हे के जाने का एहसास रहा,<br /> पर दिन की गिनती न याद रही|<br /> न मालूम पड़ा कि गुज़रा एक अरसा,<br /> ना मालूम पड़ा कब उम्र ढली|<br /> अब मायूस रहते हैं अलफ़ाज़ मेरे,<br /><span class="text_exposed_show"> मुद्दत हो गयी जब कलम चली|<br /> कभी कभी निकालता हूँ पुराने पते,<br /> और घूमता हूँ ले उन्हें,<br /> ख्यालों के ये गली, वो गली|<br /> - अक्षत डबराल<br /> "निःशब्द"</span></span></span></h6>
</div>Dabralhttp://www.blogger.com/profile/01163296598414061328noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5268130182928745390.post-7205274667521606962012-05-14T08:35:00.002-07:002012-05-14T08:35:24.363-07:00सेवा भाव मेरा पित्र है |<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
सभी देश प्रमियों को समर्पित कविता :<br />
<br />
जैसा दिखता हूँ बाहर, <br />
वैसा ही अन्दर का चित्र है |<br />
कर्म में ही है विश्वास, <br />
कर्म ही मेरा चरित्र है |<br />
त्याग मिला विरासत में मुझे,<br />
सेवा भाव मेरा पित्र है |<br />
परिश्रम है मेरा व्यवसाय,<br />
और पसीना मेरा इत्र है |<br />
सत्य ही सदा है धर्म, <br />
और यही धर्म मेरा मित्र है |<br />
<br />
अक्षत डबराल<br />
"निःशब्द"<br />
<br />
</div>Dabralhttp://www.blogger.com/profile/01163296598414061328noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5268130182928745390.post-17995354802726293732012-05-13T07:19:00.003-07:002012-05-13T07:19:37.475-07:00ये दिन है नया, नया दौर नहीं ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
ये दिन है नया, नया दौर नहीं ?<br />
जो आज है यहाँ, कभी और नहीं ?<br />
यही थी जीवन पतंग, थी साँसों की डोर यहीं,<br />
पर बहुत कुछ बदला है, जो किया हो गौर कहीं ?<br />
अरमानों की सौ तस्वीरें, हसरतों का था छोर यहीं ,<br />
सपने थे नैना भर भर , उमंगों का था शोर यहीं |<br />
कल और थी चाहत, आज कुछ और सही,<br />
तो कहो ये सच है या नहीं,<br />
ये दिन है नया, नया दौर नहीं ?<br />
<br />
अक्षत डबराल<br />
"निःशब्द"<br />
</div>Dabralhttp://www.blogger.com/profile/01163296598414061328noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5268130182928745390.post-71150863844602493682012-05-12T09:13:00.004-07:002012-05-12T09:13:40.109-07:00जितना भी जलें , साथ जलें |<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<h6 class="uiStreamMessage" data-ft="{"type":1,"tn":"K"}">
<span style="font-size: small;"><span class="messageBody" data-ft="{"type":3}">एक नदी की है आस मुझे ,<br /> जो बुझा दे ,<br /> प्रेम की जो है प्यास मुझे |<br /><span class="text_exposed_show"> जो बेल बने , बाँध ले ,<br /> मुझे आज अपनी चोटी से |<br /> जो चाबी बने , आज़ाद करे ,<br /> मुझे दुनिया की मुट्ठी से |<br /> साथ जिसका, जीने का एहसास बने ,<br /> पवित्र हो रिश्ता, मंदिर समान,<br /> और नींव अटूट विश्वास बने |<br /> वो छाँव बने, वो नाव बने ,<br /> जीवन दरिया भर साथ चले |<br /> मैं दिया बनूँ, वो बाती बने,<br /> आत्मसात हो आज हम,<br /> जितना भी जलें , साथ जलें |<br /> <br /> - अक्षत डबराल</span></span></span></h6>
</div>Dabralhttp://www.blogger.com/profile/01163296598414061328noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5268130182928745390.post-59114698366974710482012-04-21T09:29:00.002-07:002012-04-21T09:29:24.138-07:00रिहा कर देते हैं |<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
तस्वीरों की शक्ल में , एक ज़माना कैद है ,<br />
कभी कभी निगाहों से, उसको रिहा कर देते हैं |<br />
इनपर नज़र रखने को यादें मुस्तैद हैं ,<br />
कभी कभी आंसुओं से, उनको रिहा कर देते हैं |<br />
कुछ जंज़ीरें हैं रिश्तों की , नातों की ,<br />
कभी कभी बाज़ुओं से, उनको रिहा कर देते हैं |<br />
कुछ नामदार पत्थर चिने हैं जिगर में ,<br />
कभी कभी आरज़ुओं से, उनको रिहा कर देते हैं |<br />
जब हद से बढ़ जाती है इन सब की तानाशाही,<br />
कभी कभी दिल से ही,खुदको रिहा कर लेते हैं |<br />
<br />
-अक्षत डबराल<br />
"निःशब्द"<br />
</div>Dabralhttp://www.blogger.com/profile/01163296598414061328noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5268130182928745390.post-17251421734346546862012-04-18T10:03:00.003-07:002012-04-18T10:03:46.440-07:00क्यूँ हम?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
क्यूँ हम नहीं लौटा सकते , वो वक़्त , वो लम्हा ?<br />
क्यूँ हम नहीं लौटा सकते , वो जूनून , वो जज़्बा ?<br />
क्यूँ हम नहीं लौटा सकते , वो नशा , वो फितूर ?<br />
क्यूँ हम नहीं लौटा सकते , वो कशिश , वो सुरूर ?<br />
क्यूँ हम नहीं लौटा सकते , वो शख्शियत, वो वज़ूद ?<br />
क्यूँ हम नहीं लौटा सकते , वो शान , वो रसूक ?<br />
- अक्षत डबराल<br />
<div style="text-align: left;">
"निःशब्द" </div>
</div>Dabralhttp://www.blogger.com/profile/01163296598414061328noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5268130182928745390.post-84825312209418982032012-04-05T09:59:00.001-07:002012-04-05T09:59:12.375-07:00क्यों न चाँद पे पत्थर मार कर दो चाँद कर दूँ ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
क्यों न चाँद पे पत्थर मार कर दो चाँद कर दूँ ?<br />
क्यों न उसके घमंड को बर्बाद कर दूँ ?<br />
रात में खिलता है तो उसका सिर तना रहता है |<br />
सारे आसमान का बादशाह बना रहता है |<br />
क्यों न सब तारों के मन की बात कर दूँ ?<br />
क्यों न चाँद पे पत्थर मार कर दो चाँद कर दूँ ?<br />
<br />
दो होंगे, तो इसकी हुकूमत नहीं चलेगी |<br />
इसकी चांदनी की फ़िज़ूल कीमत नहीं चलेगी |<br />
न इसको देखने को लोग तरसेंगे,<br />
न इस पर नाज़ नखरे बरसेंगे |<br />
क्यों न इसके पापों का आज सब हिसाब कर दूँ ?<br />
क्यों न चाँद पे पत्थर मार कर दो चाँद कर दूँ ?<br />
<br />
- अक्षत डबराल<br />
"निःशब्द"<br />
</div>Dabralhttp://www.blogger.com/profile/01163296598414061328noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5268130182928745390.post-32069797333773817782012-04-03T07:15:00.000-07:002012-04-03T07:15:05.712-07:00पलकों से दो ख्वाब गिरे<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
पलकों से दो ख्वाब गिरे , मुझको सुबह तकिये पर मिले |<br />
मैंने कहा तुम कौन हो भाई ? बोले, आपकी सेना , आपके सिपाही |<br />
<br />
कौन सी सेना , कौन सिपाही ? मैंने कहाँ कभी करी लड़ाई ?<br />
बोले, अरे राजन , आप भूल गए ?
कल रात आप दरबार में थे ,<br />
हम सब आपकी सरकार में थे |<br />
आपने ही भेजी थी सेना , बोले थे सब विजय कर लेना |<br />
<br />
अब चलिए , सब राज्य जीत लिया है |<br />
आपको राजा मनोनीत किया है |<br />
मैंने सोचा, क्या ये सच में हो रहा है ?<br />
या मेरा दिमाग कुछ कारस्तानी बो रहा है ?<br />
<br />
और जैसे मैं उठने लगा , वो सिपाही बैठने लगे |<br />
बैठे तो ऐसे बैठे, की गायब ही हो गए |<br />
मैं भी समझ गया की सब ख्वाब था ,<br />
खुद से कहा, बेटा , तुम ज्यादा सो गए |<br />
<br />
- अक्षत डबराल<br />
निःशब्द <br />
</div>Dabralhttp://www.blogger.com/profile/01163296598414061328noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5268130182928745390.post-66907874411857811092012-04-01T10:47:00.002-07:002012-04-01T10:47:41.356-07:00बोलता हूँ |<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
माथे पर लकीरें लेकर, <br />
अपना ही ज़ेहन टटोलता हूँ |<br />
मंजिलें बहुत हैं, रास्ते बहुत,<br />
रास्ते में मिले कंकर तोलता हूँ |<br />
<br />
कुछ सपने, कुछ अपने, जिनसे रिश्ते बन गए ,<br />
किसको पकडूँ, किसको छोडूँ,<br />
मैं सबको हमसफ़र बोलता हूँ |<br />
<br />
सम्भाल कर रखी है हर याद मैंने,<br />
कभी कभी चुपके से,<br />
उस पुराने संदूक को खोलता हूँ |<br />
<br />
मेरे नाम कुछ नहीं है शायद,<br />
बस चंद लम्हे, किस्से ही हैं,<br />
जितना माँगा उससे ज्यादा मिला मुझे,<br />
मैं खुद को खुशकिस्मत बोलता हूँ |<br />
<br />
अक्षत डबराल<br />
"निःशब्द" </div>Dabralhttp://www.blogger.com/profile/01163296598414061328noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5268130182928745390.post-69026920137955954342012-03-27T09:49:00.002-07:002012-03-27T09:51:56.802-07:00कुछ राहें<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<h6 class="uiStreamMessage" data-ft="{"type":1}">
<span class="messageBody" data-ft="{"type":3}" style="font-size: small;">कि कुछ राहें रह गयीं हैं चलने को ,<br /> जो यूँही खड़ी, दूर से ही मुझे बुलाती हैं |<br /> पर उन सफरों की यादों का क्या कुसूर ?<br /> जो रोज़ रात थपक थपक कर मुझे सुलाती हैं |<br /> <br /><span class="text_exposed_show"> मैंने तो लाख चाहा था चलना ,<br /> पर वक़्त की रज़ा ही कुछ और थी |<br /> उसने पहले की आगाह किया था मुझे ,<br /> वादाखिलाफी की सजा ही कुछ और थी |</span></span></h6>
<h6 class="uiStreamMessage" data-ft="{"type":1}">
<span class="messageBody" data-ft="{"type":3}" style="font-size: small;"><span class="text_exposed_show">- अक्षत डबराल</span></span></h6>
<br /></div>Dabralhttp://www.blogger.com/profile/01163296598414061328noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5268130182928745390.post-63448018154672191942012-03-22T10:39:00.000-07:002012-03-22T10:39:13.637-07:00और वक़्त ने पर्दा खींच दिया ...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
ज़िन्दगी की कुछ यादें आई थीं ,<br />
कल देर शाम तक गुफ्तगू हुई ।<br />
पर जैसे जैसे शाम ढली,<br />
लम्हों ने मेरी आँखों को मींच दिया ,<br />
और वक़्त ने पर्दा खींच दिया ।<br />
<br />
आँख लगी, तो ख्वाब आये ,<br />
भूले बिसरे ज़ज्बात लाये ।<br />
पुरानी, सीली सी तस्वीरों को ले ,<br />
मुझे अपनी बांहों में भींच लिया ,<br />
और वक़्त ने पर्दा खींच दिया ।<br />
<br />
यादें थीं तो खिंचाव भी था ,<br />
नयी पुरानी का हिसाब भी था ।<br />
फिर जब बरसीं वो सावन जैसे ,<br />
मुझे ख़ुश्बू से यूँ तर सींच दिया ,<br />
और वक़्त ने पर्दा खींच दिया ।<br />
<br />
अक्षत डबराल<br />
"निःशब्द" </div>Dabralhttp://www.blogger.com/profile/01163296598414061328noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5268130182928745390.post-65661114535599203962012-03-19T07:28:00.002-07:002012-03-19T07:28:49.590-07:00वो तो ठूंठ ही थे ...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
वो तो ठूंठ ही थे , जिन्हें पत्तों की आस थी ,<br />
पर पतझड़ भी तो जिद्दी था |<br />
जो तनहा ही रहे ताउम्र खड़े ,<br />
उन्हें भी एक साथ की प्यास थी |<br />
<br />
वो तो ठूंठ ही थे , जिन्हें छुवन की आस थी ,<br />
पर राह भी तो ज़ालिम थी |<br />
जो आने न दिया अपने सामने उन्हें ,<br />
सुनी न किसी ने , वो जो आवाज़ थी |<br />
<br />
- अक्षत डबराल </div>Dabralhttp://www.blogger.com/profile/01163296598414061328noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5268130182928745390.post-2234487818417169002012-03-17T01:55:00.003-07:002012-03-17T01:58:49.494-07:00Nothing's ....<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<h6 class="uiStreamMessage" data-ft="{"type":1}" style="color: white; font-family: Georgia,"Times New Roman",serif; font-weight: normal;">
<span style="font-size: large;"><span class="messageBody" data-ft="{"type":3}">Nothing's nice, as cooking rice on a Saturday!<br /> Nothing's bad, as looking sad on a Sunday!<br /> Nothing's poor, as a long tour on a Monday!<br /> Nothing's old, as a boss' scold on a Tuesday!<br /> Nothing's cruel, as a status mail on a Wednesday|<br /><span class="text_exposed_show"> Nothing's wrong, as a argument strong on a Thursday!<br /> Nothing's dry, as a teetotaler guy on a Friday!<br /> <br /> - Akshat Dabral</span></span></span></h6>
</div>Dabralhttp://www.blogger.com/profile/01163296598414061328noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5268130182928745390.post-47122922235249938062012-03-16T11:02:00.001-07:002012-03-16T11:02:40.133-07:00ये सुलझाए नहीं सुलझते ।<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मन के उलझे हैं तार ,<br />
सुलझाए नहीं सुलझते ।<br />
ऐसी क्या उलझन होगी ?<br />
कि गिरह पे गिरह पड़ गयीं ?<br />
कभी बुझते कभी सुलगते,<br />
ये सुलझाए नहीं सुलझते ।<br />
<br />
यादों के जालों से हैं तार ,<br />
भीड़ से आते हैं बार बार ।<br />
कौन सा सिरा पकडूँ , कौन सा छोडूँ ?<br />
सरसरी रेत से जलते , फिसलते,<br />
ये सुलझाए नहीं सुलझते ।<br />
<br />
अरमानों की पतंगों को ,<br />
मन की उमंगों को ,<br />
अब कहाँ से डोर दूँ उनको ?<br />
सब तार रहते हैं उलझते ,<br />
ये सुलझाए नहीं सुलझते ।<br />
<br />
अक्षत डबराल<br />
"निःशब्द" </div>Dabralhttp://www.blogger.com/profile/01163296598414061328noreply@blogger.com4