शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010

तो फिर क्या जिया ?

दीप बन कर जियो ,
जल जल कर जियो ,
थोड़ा उजाला न किया ,
तो फिर क्या जिया ?

धुंआ बन कर जियो ,
उड़ उड़ कर जियो ,
कोई कोना काला न किया ,
तो फिर क्या जिया ?

शेर बन कर जियो ,
पर 'उससे' डर कर जियो ,
कमज़ोर का शिकार किया ,
तो फिर क्या जिया ?

एक मिसाल बन कर जियो ,
एक नाम बन कर जियो ,
जीतेजी जग ने भुला दिया ,
तो फिर क्या जिया ?

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

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