रविवार, 19 अगस्त 2012

Few years back i remember,
i knew a boy,
who was too shy.
He won't say anything,
and won't tell you why.
You ask him something,
his mouth will turn dry.
He will be so feared,
that he might soon cry.
Today, i met him again,

when facing a mirror,
i passed him by.
I am surprised,
to see that guy.
For i never thought,
that i will be,
what today am I.

- Akshat Dabral
फिर ख्यालों से दिल्लगी की तबियत हुई,
और हमने लफ़्ज़ों की डोर को थाम लिया|
अब किसके रोके रुकेगा ये सफ़र,
जब हमने मुसाफिर होना ही ठान लिया|
चल गए, तो जल गए, थम गए तो ख़त्म हुए,
हमने खुद को चिराग ही मान लिया|
अब और क्या मिटाएगा वक़्त निशाँ हमारा,
जब हमने खुद को ख़ाक ही मान लिया|
- अक्षत डबराल
"निःशब्द"

गुरुवार, 16 अगस्त 2012

मुझे पारस बनना है!

हर चीज़ को छू सोना कर दूँ,
खुद में इतना साहस भरना है|
भसम लगाकर मेहनत की,
मुझे पारस बनना है!
मेरा काम ही परिचय बने,
नाम का क्या करना है?
अब और नहीं उद्देश्य कोई,
मुझे पारस बनना है!
समय,प्रारब्ध के वार सहूँ,
मैं उफ़ न एक बार कहूँ|
मुझे खुद का आदर्श बनना है,
मुझे पारस बनना है!
-अक्षत डबराल
"निःशब्द"