रविवार, 30 सितंबर 2012

आसमाँ को देखा

आसमाँ को देखा, पूछा,
तुम उंचाई से थकते नहीं हो?
बोला, मैं कहाँ ऊँचा हूँ,
तुम्हीं मुझे नीचे रखते नहीं हो|
मैंने कहा, नीचे रख दें तो,
हम सरहद किसको मानेंगे?
जब उड़ने को मिल जाएँ पंख,
हम मंज़िल किसको मानेंगे?
बोला, इतना भी मैं दूर नहीं,
कि उड़ने को जो पंख चाहिए|
चाहिए तो बस तेज़ निगाह,
और बुलंद हौसलों का संग चाहिए|
- अक्षत डबराल

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