हंस हंस अपना फ़र्ज़,
अदा करती हैं खाली कुर्सियां |
कितनों कितनों को मिलाकर ,
जुदा करती हैं खाली कुर्सियां |
कभी ख़ुशी के आसूं लिए मिलाती हैं ,
कभी भावुक हो ,
विदा करती हैं खाली कुर्सियां |
भरी हो तो इतरा जाती ,
खाली हो तो ,
खुशाम्दीन करती हैं खाली कुर्सियां |
सच कितना सुख दुःख ,
बाँट जाती हैं खाली कुर्सियां |
यूँ सहते अपना वक़्त ,
काट जाती हैं खाली कुर्सियां |
जब तक चलती , ज़रा न खलती ,
आँगन में खाली कुर्सियां |
जहाँ टूटी , वहां चुभती ,
आँखों में खाली कुर्सियां |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
बुधवार, 23 दिसंबर 2009
सोमवार, 7 दिसंबर 2009
क्योंकि वह गरीब आदमी है ...
हाँ , उसका दबना लाज़मी है ,
क्योंकि वह गरीब आदमी है |
उसका बचपन ही बुढापा है ,
उसकी न कोई जवानी है ,
क्योंकि वह गरीब आदमी है |
बेबस, लाचार ज़िन्दगी ,
छलनी तार तार ज़िन्दगी |
जीना तो मुश्किल है ,
मरने में आसानी है ,
क्योंकि वह गरीब आदमी है |
कितने कितने खवाब सजाता ,
कितनी उम्मीद लगाता |
पर उसकी गुहार कब सुनी जानी है ?
सूनी सी आँखें उसकी , खाली ही रह जानी है |
क्योंकि वह गरीब आदमी है |
दुनिया बहुत आगे बढ़ गयी ,
उसकी कहानी वही पुरानी है |
चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता ,
क्योंकि वह गरीब आदमी है ,
क्योंकि वह गरीब आदमी है |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
क्योंकि वह गरीब आदमी है |
उसका बचपन ही बुढापा है ,
उसकी न कोई जवानी है ,
क्योंकि वह गरीब आदमी है |
बेबस, लाचार ज़िन्दगी ,
छलनी तार तार ज़िन्दगी |
जीना तो मुश्किल है ,
मरने में आसानी है ,
क्योंकि वह गरीब आदमी है |
कितने कितने खवाब सजाता ,
कितनी उम्मीद लगाता |
पर उसकी गुहार कब सुनी जानी है ?
सूनी सी आँखें उसकी , खाली ही रह जानी है |
क्योंकि वह गरीब आदमी है |
दुनिया बहुत आगे बढ़ गयी ,
उसकी कहानी वही पुरानी है |
चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता ,
क्योंकि वह गरीब आदमी है ,
क्योंकि वह गरीब आदमी है |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
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