शनिवार, 13 फ़रवरी 2010

जो उस कारण को जी जाओ|

लक्ष्य बनाओ , ध्यान लगाओ ,
चलते, बस चलते जाओ |
संकल्प करो , हठ लगाओ ,
चलते, बस चलते जाओ |

रस्ते रस्ते , चलते चलते ,
जों पग कभी थमने लगे |
हृदय में जो बवाल उठे ,
और ध्येय डिगने लगे |

स्मरण करो अपने लक्ष्य को ,
चिर परिचित स्वप्न अक्षय को |
दृष्टि उठाओ फिर यूँ ,
गंतव्य दिखा दे जो विश्व को |

मरुस्थली है , चले जा रहे ,
कुछ चिन्ह तो दो रेत को |
मरणोपरांत भी ध्यान करे कोई ,
कुछ तो ऐसे संस्मरण हों |

क्यों मिला यह विश्व , यह जीवन ?
इसका कारण खोज लाओ |
और सफल है यह जीवन ,
जो उस कारण को जी जाओ |
जो उस कारण को जी जाओ |

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010

तो फिर क्या जिया ?

दीप बन कर जियो ,
जल जल कर जियो ,
थोड़ा उजाला न किया ,
तो फिर क्या जिया ?

धुंआ बन कर जियो ,
उड़ उड़ कर जियो ,
कोई कोना काला न किया ,
तो फिर क्या जिया ?

शेर बन कर जियो ,
पर 'उससे' डर कर जियो ,
कमज़ोर का शिकार किया ,
तो फिर क्या जिया ?

एक मिसाल बन कर जियो ,
एक नाम बन कर जियो ,
जीतेजी जग ने भुला दिया ,
तो फिर क्या जिया ?

अक्षत डबराल
"निःशब्द"