शनिवार, 20 मार्च 2010

बस उस दिन को जिया करता हूँ |

मेरा एक नन्हा सपना है ,
उसको मैं छुपा कर रखता हूँ |
दुनिया की नज़रों से बचाकर ,
सीने में लुका कर रखता हूँ |

नाम से ही टूट न जाए ,
हौले से पुकारा करता हूँ |
कहीं कोई चुरा न ले मुझसे ,
मन ही मन में डरता हूँ |

अपने उस सपने को लेकर ,
क्या कुछ नहीं करता हूँ |
सच हो जाए एक दिन ,
बस उस दिन को जिया करता हूँ |
बस उस दिन को जिया करता हूँ |

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

गुरुवार, 11 मार्च 2010

कैसी कैसी तकदीरें ?

काम का भारी बोझ कहीं ,
आराम की सारी सोच कहीं |
कहीं राजा , कहीं फकीरें ,
कैसी कैसी तकदीरें ?

कोई हाथ पे लिखा लाया ,
कोई माथे पे छपा लाया |
बनती बिगड़ती तस्वीरें ,
कैसी कैसी तकदीरें |

कहीं ख़ुशी का सूरज न डुबता,
कहीं एक तारा भी न उगता |
कहीं यौवन, कहीं लकीरें ,
कैसी कैसी तकदीरें |

कहीं किसी की चांदी कटती ,
कहीं ता उम्र क़र्ज़ में कटती |
हिसाब ज़िन्दगी , इनाम रसीदें ,
कैसी कैसी तकदीरें |

अक्षत डबराल
"निःशब्द"