शनिवार, 8 मई 2010

दिल अज़ीज़ ज़िन्दगी ...

इंसान क्या ढूंढता है ?
बस दो बूँद ज़िन्दगी |
उम्र बीत जाती है ,
पर न मिलती ,
दिल अज़ीज़ ज़िन्दगी |

कभी रंग कम लगता है ,
कभी बस गम लगता है |
ज़िन्दगी को जितना करो ,
सब कम लगता है |

थक जाता है इंसान ,
इसकी तलाश में |
एक एक बाल पक जाता है ,
इसी पशोपेश में |

आखिरी वक़्त तक भी ,
पाना चाहता है उसको |
कंधे पर सर रखकर ,
आप बीती सुनाना चाहता है उसको |

सुना , फ़कीर कहते हैं ,
इस चीज़ की बहुत है संजीदगी |
खुदा एक बार को मिल सकता है ,
पर न मिलती दिल अज़ीज़ ज़िन्दगी |

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

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