सड़कों पे भागती ये बेबसियाँ ,
खम्बों से लिपटी सिसकियाँ |
है हर कोई मजबूर लेकिन ,
भगातीं हैं ये मजबूरियां |
यूँ तो कोई किसी का दास नहीं ,
सबकुछ किसी के पास नहीं |
लाख कर कोशिश ख़ास बनो ,
पर तुम आम ही हो , ख़ास नहीं |
दौड़ा लो हसरत के घोड़े ,
पर सह लेना नसीब के कोड़े |
जब तुलेंगे ये दोनों कहीं ,
भारी होंगे कोड़े , और हलके घोड़े |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"