त्रेह्सठ वर्ष का हुआ गणतंत्र ,
किन्तु विचारें ,
क्या हम सच में हैं स्वतंत्र ?
सड़ते गलते सरकारी तंत्र ,
हर राष्ट्र से लेकर ऋण ।
अपने गौरव का कर समर्पण ,
हम अभी भी हैं परतंत्र ।
स्वदेशी का कोई साथ नहीं करता ,
हिंदी में कोई बात नहीं करता ।
सभ्यता का हो रहा हरण ।
सभी जानते पापी कसाब को ,
कोई न जानता कौन था दानी करण।
त्रेह्सठ वर्ष का हुआ गणतंत्र ,
किन्तु विचारें ,
क्या हम सच में हैं स्वतंत्र ?
राष्ट्र के नेताओं की छवि साफ़ नहीं ,
करोड़ों के घोटाले माफ़ हैं ,
गरीब की चोरी माफ़ नहीं ।
नेता तो "शास्त्री जी" के साथ खतम हो गए ,
बाकी तो बस हैं मुद्रा छापने के यन्त्र ।
त्रेह्सठ वर्ष का हुआ गणतंत्र ,
किन्तु विचारें ,
क्या हम सच में हैं स्वतंत्र ?बढ़ रही है जनसँख्या ,
साथ बढ़ रहे गरीब ।
विवश हों , कोसें नसीब।
दीन हीन भूखे जन ,
उनका कैसा ये गणतंत्र ?
त्रेह्सठ वर्ष का हुआ गणतंत्र ,
किन्तु विचारें ,
क्या हम सच में हैं स्वतंत्र ?अक्षत डबराल
"निःशब्द"
आज गणतंत्र कहाँ रह गया है ... बस कुछ लोगों का तंत्र बन के रह गया है ..
जवाब देंहटाएंकाश ये सब ठीक हो पाता ...
satya vachan
हटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति|
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें|
dhanyavaad, aapko bhi shubhkaamnaayein
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