ये दिन है नया, नया दौर नहीं ?
जो आज है यहाँ, कभी और नहीं ?
यही थी जीवन पतंग, थी साँसों की डोर यहीं,
पर बहुत कुछ बदला है, जो किया हो गौर कहीं ?
अरमानों की सौ तस्वीरें, हसरतों का था छोर यहीं ,
सपने थे नैना भर भर , उमंगों का था शोर यहीं |
कल और थी चाहत, आज कुछ और सही,
तो कहो ये सच है या नहीं,
ये दिन है नया, नया दौर नहीं ?
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
जो आज है यहाँ, कभी और नहीं ?
यही थी जीवन पतंग, थी साँसों की डोर यहीं,
पर बहुत कुछ बदला है, जो किया हो गौर कहीं ?
अरमानों की सौ तस्वीरें, हसरतों का था छोर यहीं ,
सपने थे नैना भर भर , उमंगों का था शोर यहीं |
कल और थी चाहत, आज कुछ और सही,
तो कहो ये सच है या नहीं,
ये दिन है नया, नया दौर नहीं ?
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें