सभी देश प्रमियों को समर्पित कविता :
जैसा दिखता हूँ बाहर,
वैसा ही अन्दर का चित्र है |
कर्म में ही है विश्वास,
कर्म ही मेरा चरित्र है |
त्याग मिला विरासत में मुझे,
सेवा भाव मेरा पित्र है |
परिश्रम है मेरा व्यवसाय,
और पसीना मेरा इत्र है |
सत्य ही सदा है धर्म,
और यही धर्म मेरा मित्र है |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
जैसा दिखता हूँ बाहर,
वैसा ही अन्दर का चित्र है |
कर्म में ही है विश्वास,
कर्म ही मेरा चरित्र है |
त्याग मिला विरासत में मुझे,
सेवा भाव मेरा पित्र है |
परिश्रम है मेरा व्यवसाय,
और पसीना मेरा इत्र है |
सत्य ही सदा है धर्म,
और यही धर्म मेरा मित्र है |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
लाजबाब, डबराल जी ! देश प्रेम से ओतप्रोत सुन्दर कविता ! जब कभी वक्त मिले, लिखते रहिये !शुभकामनाये !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मान्यवर, आपकी अपेक्षा पर खरा उतरने का प्रयत्न करूँगा!
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