गुरुवार, 3 सितंबर 2009

आज शाम ढल गयी ,
कल फिर सवेरा होगा |
सूनी खंडहर आँखों में ,
ख़्वाबों का बसेरा होगा |

हंसते रोते ,जगते सोते ,
बस जिसको तू मांग रहा |
आज नहीं , न सही ,
कभी वो मुकाम तेरा होगा |

दो दिन न रुकेंगे ,
उदासी के बादल |
जल्द ही तेरे घर ,
खुशियों का डेरा होगा |

ऐसा ही न रहेगा समां,
कभी तो वक़्त तेरा होगा |
आज शाम ढल गयी ,
कल फिर सवेरा होगा |

अक्षत डबराल

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