शुक्रवार, 9 अक्टूबर 2009

कलम उठायी धीरे धीरे ,
शब्द चुने हीरे हीरे |
सुर के जोड़े कुछ सिरे ,
ग़ज़ल बनी धीरे धीरे |

मोती सी कुछ बूदें लीं,
बिजली सी फुलझरियां लीं |
दिए सी टिमटिमाती ,
मद्धम लय की लड़ियाँ लीं |

फूलों से कुछ खुशबू ली ,
हवाओं से कुछ नमी ली |
चाँद से ज़मीं पे आती ,
ठंडी धुली रौशनी ली |

भावों का लेकर धागा ,
ये सब उसमें पिरो दूँ धीरे धीरे ,
सुर छलके यहाँ वहां ,
ग़ज़ल बनी धीरे धीरे |

अक्षत डबराल

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