गुरुवार, 7 जनवरी 2010

फलक देख !

क्यूँ देखता है जमीं को ?
नज़र उठा फलक देख !
क्या तपता , चमकता सूरज है ?
सर उठा , झलक देख !

हार मानकर बैठा है क्यूँ ?
चीटीं को जीतने की ललक देख !
औरों को मुश्किल नहीं क्या ?
उनकी उम्मीदों भरी पलक देख !

गिलास खाली नहीं , आधा भरा है क्या ?
कभी दुनिया से अलग देख !
कभी जला है जुनून की आग में ?
खुद पर जगा के अलख देख !

क्यूँ देखता है जमीं को ?
नज़र उठा फलक देख !
नज़र उठा फलक देख !

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

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