माथे पर लकीरें लेकर,
अपना ही ज़ेहन टटोलता हूँ |
मंजिलें बहुत हैं, रास्ते बहुत,
रास्ते में मिले कंकर तोलता हूँ |
कुछ सपने, कुछ अपने, जिनसे रिश्ते बन गए ,
किसको पकडूँ, किसको छोडूँ,
मैं सबको हमसफ़र बोलता हूँ |
सम्भाल कर रखी है हर याद मैंने,
कभी कभी चुपके से,
उस पुराने संदूक को खोलता हूँ |
मेरे नाम कुछ नहीं है शायद,
बस चंद लम्हे, किस्से ही हैं,
जितना माँगा उससे ज्यादा मिला मुझे,
मैं खुद को खुशकिस्मत बोलता हूँ |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
अपना ही ज़ेहन टटोलता हूँ |
मंजिलें बहुत हैं, रास्ते बहुत,
रास्ते में मिले कंकर तोलता हूँ |
कुछ सपने, कुछ अपने, जिनसे रिश्ते बन गए ,
किसको पकडूँ, किसको छोडूँ,
मैं सबको हमसफ़र बोलता हूँ |
सम्भाल कर रखी है हर याद मैंने,
कभी कभी चुपके से,
उस पुराने संदूक को खोलता हूँ |
मेरे नाम कुछ नहीं है शायद,
बस चंद लम्हे, किस्से ही हैं,
जितना माँगा उससे ज्यादा मिला मुझे,
मैं खुद को खुशकिस्मत बोलता हूँ |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
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