सोमवार, 14 मई 2012

सेवा भाव मेरा पित्र है |

सभी देश प्रमियों को समर्पित कविता :

जैसा दिखता हूँ बाहर,
वैसा ही अन्दर का चित्र है |
कर्म में ही है विश्वास,
कर्म ही मेरा चरित्र है |
त्याग मिला विरासत में मुझे,
सेवा भाव मेरा पित्र है |
परिश्रम है मेरा व्यवसाय,
और पसीना मेरा इत्र है |
सत्य ही सदा है धर्म,
और यही धर्म मेरा मित्र है |

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

रविवार, 13 मई 2012

ये दिन है नया, नया दौर नहीं ?

ये दिन है नया, नया दौर नहीं ?
जो आज है यहाँ, कभी और नहीं ?
यही थी जीवन पतंग, थी साँसों की डोर यहीं,
पर बहुत कुछ बदला है, जो किया हो गौर कहीं ?
अरमानों की सौ तस्वीरें, हसरतों का था छोर यहीं ,
सपने थे नैना भर भर , उमंगों का था शोर यहीं |
कल और थी चाहत, आज कुछ और सही,
तो कहो ये सच है या नहीं,
ये दिन है नया, नया दौर नहीं ?

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

शनिवार, 12 मई 2012

जितना भी जलें , साथ जलें |

एक नदी की है आस मुझे ,
जो बुझा दे ,
प्रेम की जो है प्यास मुझे |
जो बेल बने , बाँध ले ,
मुझे आज अपनी चोटी से |
जो चाबी बने , आज़ाद करे ,
मुझे दुनिया की मुट्ठी से |
साथ जिसका, जीने का एहसास बने ,
पवित्र हो रिश्ता, मंदिर समान,
और नींव अटूट विश्वास बने |
वो छाँव बने, वो नाव बने ,
जीवन दरिया भर साथ चले |
मैं दिया बनूँ, वो बाती बने,
आत्मसात हो आज हम,
जितना भी जलें , साथ जलें |

- अक्षत डबराल