रविवार, 29 जुलाई 2012

जब नैना हैं तो, ख्वाब भी होंगे|

जब नैना हैं तो,
ख्वाब भी होंगे|
बसेंगे कुछ तो,
कुछ बर्बाद भी होंगे|
दिल में रहेंगे कुछ कैद तो,
कुछ आज़ाद भी होंगे|
राह में बिछड़ेंगे कुछ तो,
कुछ उम्रभर साथ भी होंगे|
इंसां की फितरत है ख्वाब सज़ाना,
ये आज हैं, मुद्दतों बाद भी होंगे|
जब नैना हैं तो,
ख्वाब भी होंगे!

-अक्षत डबराल
"निःशब्द"

मंगलवार, 24 जुलाई 2012

हम क्यूँ हाथ जोड़ना भूल गए ?

इतना क्यों ऊपर उठे कि,
खुद को धरती से जोड़ना भूल गए ?
सर उठाना तो याद रहा पर,
हम क्यूँ हाथ जोड़ना भूल गए ?
जंजीरों को तो तोड़ा हमने पर,
क्यूँ दीवारें तोड़ना भूल गए ?
आँख मिलाना रास रहा पर,
हम क्यूँ हाथ जोड़ना भूल गए ?
रिश्तों के लिए क्यूँ अब हम,
मौसमों को मोड़ना भूल गए ?
आज भी दुखता है मन कि,
हम क्यूँ हाथ जोड़ना भूल गए ?
- अक्षत डबराल
"निःशब्द"

शुक्रवार, 13 जुलाई 2012

एक एक लम्हे के जाने का एहसास रहा,
पर दिन की गिनती न याद रही|
न मालूम पड़ा कि गुज़रा एक अरसा,
ना मालूम पड़ा कब उम्र ढली|
अब मायूस रहते हैं अलफ़ाज़ मेरे,
मुद्दत हो गयी जब कलम चली|
कभी कभी निकालता हूँ पुराने पते,
और घूमता हूँ ले उन्हें,
ख्यालों के ये गली, वो गली|
- अक्षत डबराल
"निःशब्द"