गुरुवार, 22 अक्टूबर 2009

भोले से दो नैना , सुनैना |
जगते रहे , जलते रहे |
हुई दिन से रैना |

सोते सूखे पानियों के ,रेगिस्तां बन बैठे |
रेत ही रेत है , पानी कैसे बहना ?
भोले से दो नैना , सुनैना |

कबसे यूँ थे आस लगाए ,तुमसे मिलना , कहना |
तक तक पथराये नैना , हैं ना ?
भोले से दो नैना , सुनैना |

अक्षत डबराल

शुक्रवार, 9 अक्टूबर 2009

कलम उठायी धीरे धीरे ,
शब्द चुने हीरे हीरे |
सुर के जोड़े कुछ सिरे ,
ग़ज़ल बनी धीरे धीरे |

मोती सी कुछ बूदें लीं,
बिजली सी फुलझरियां लीं |
दिए सी टिमटिमाती ,
मद्धम लय की लड़ियाँ लीं |

फूलों से कुछ खुशबू ली ,
हवाओं से कुछ नमी ली |
चाँद से ज़मीं पे आती ,
ठंडी धुली रौशनी ली |

भावों का लेकर धागा ,
ये सब उसमें पिरो दूँ धीरे धीरे ,
सुर छलके यहाँ वहां ,
ग़ज़ल बनी धीरे धीरे |

अक्षत डबराल

मंगलवार, 6 अक्टूबर 2009

I believe in self, that i'll over come,
what may come.

I believe in action, that i'll perform,
to sail every storm.

I believe in strength, that i'll gather,
as i go on farther.

I believe in spirit , that toils and toils,
and never rests.

I believe in character, that stays intact,
and never bends.

I believe in courage, that i'll stand,
till it all ends.

Akshat Dabral