कुछ कसक सी है सीने में,
इसकी दवा कहाँ से लाऊं ?
मुझे लिखने का मर्ज़ है ,
लिखता हूँ जब तक दर्द रहे |
ये ज़िन्दगी ही वजह है इनकी ,
कोई और वजह कहाँ से लाऊं ?
वक़्त चलता रहता है ,
जैसे पानी बहता रहता है |
जों भी है बस अभी है ,
दूजा वक़्त कहाँ से लाऊं ?
ख्यालों के भी कुछ तिनके ,
डूबते उतरते रहते हैं जेहन में |
दरिया एक है , ख्याल बहुत ,
एक और जेहन कहाँ से लाऊं ?
मंज़िल एक है , राह कई ,
लेकिन केवल एक सही |
सही है पर बहुत मुश्किल ,
आसान कहाँ से लाऊं ?
उड़ने की चाह है मुझे ,
पंख तो उगा लिए हैं मैंने |
उड़ान भरने को लेकिन खुला ,
आसमान कहाँ से लाऊं ?
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
शनिवार, 13 नवंबर 2010
मंगलवार, 2 नवंबर 2010
तुम कौन हो ?
ठण्ड की गर्म धूप हो तुम ,
या नदी की मस्त लहर ?
मुंडेर की पगडण्डी हो या ,
मनमौजी टेढ़ी नहर |
चांदनी हो सकती हो तुम ,
पर इतनी उसकी लौ नहीं |
सपनों में मुझे बुलाता है जों ,
क्या तुम ही हो , कोई और नहीं ?
खुशबू का झोंका हो तुम ,
या बारिश का छींटा हो ?
अनकहा अरमान हो कोई ,
जों उम्मीद पे ही जीता हो ?
डर से छुपायी बात हो तुम ,
या गुनगुनाया गीत कोई ?
अनजाने से दिखते हो ,
या लगते अपने मीत कोई ?
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
या नदी की मस्त लहर ?
मुंडेर की पगडण्डी हो या ,
मनमौजी टेढ़ी नहर |
चांदनी हो सकती हो तुम ,
पर इतनी उसकी लौ नहीं |
सपनों में मुझे बुलाता है जों ,
क्या तुम ही हो , कोई और नहीं ?
खुशबू का झोंका हो तुम ,
या बारिश का छींटा हो ?
अनकहा अरमान हो कोई ,
जों उम्मीद पे ही जीता हो ?
डर से छुपायी बात हो तुम ,
या गुनगुनाया गीत कोई ?
अनजाने से दिखते हो ,
या लगते अपने मीत कोई ?
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
सोमवार, 1 नवंबर 2010
बात चली
आगे रात चली , पीछे बात चली |
रात रात भर , बात बात में ,
साथ साथ में , कोई बात चली |
राज रानी की , आग पानी की |
कही अनकही , नयी पुरानी की |
ले अपने रंग सात चली ,
रात रात भर , बात बात में ,
साथ साथ में , बात चली |
कुछ अपनों की , कुछ सपनों की |
कुछ किस्सों की , कोई कहानी की |
ले यादों की बारात चली ,
रात रात भर , बात बात में ,
साथ साथ में , बात चली |
ओस की बूँदें , आँखें खुली - मूंद के |
उनमें कुछ खोकर , कुछ ढूंढ के |
दे कोई सौगात चली ,
रात रात भर , बात बात में ,
साथ साथ में , बात चली |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
रात रात भर , बात बात में ,
साथ साथ में , कोई बात चली |
राज रानी की , आग पानी की |
कही अनकही , नयी पुरानी की |
ले अपने रंग सात चली ,
रात रात भर , बात बात में ,
साथ साथ में , बात चली |
कुछ अपनों की , कुछ सपनों की |
कुछ किस्सों की , कोई कहानी की |
ले यादों की बारात चली ,
रात रात भर , बात बात में ,
साथ साथ में , बात चली |
ओस की बूँदें , आँखें खुली - मूंद के |
उनमें कुछ खोकर , कुछ ढूंढ के |
दे कोई सौगात चली ,
रात रात भर , बात बात में ,
साथ साथ में , बात चली |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
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