कुछ कसक सी है सीने में,
इसकी दवा कहाँ से लाऊं ?
मुझे लिखने का मर्ज़ है ,
लिखता हूँ जब तक दर्द रहे |
ये ज़िन्दगी ही वजह है इनकी ,
कोई और वजह कहाँ से लाऊं ?
वक़्त चलता रहता है ,
जैसे पानी बहता रहता है |
जों भी है बस अभी है ,
दूजा वक़्त कहाँ से लाऊं ?
ख्यालों के भी कुछ तिनके ,
डूबते उतरते रहते हैं जेहन में |
दरिया एक है , ख्याल बहुत ,
एक और जेहन कहाँ से लाऊं ?
मंज़िल एक है , राह कई ,
लेकिन केवल एक सही |
सही है पर बहुत मुश्किल ,
आसान कहाँ से लाऊं ?
उड़ने की चाह है मुझे ,
पंख तो उगा लिए हैं मैंने |
उड़ान भरने को लेकिन खुला ,
आसमान कहाँ से लाऊं ?
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
ओह! बेह्द गहन अभिव्यक्ति।
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