सोमवार, 30 जनवरी 2012
शनिवार, 28 जनवरी 2012
उफ़ ये दिल्ली , हाय ये दिल्ली ।
ये शहर तुझे बना दे चूहा ,
पीछे भागे बन कर बिल्ली ।
जान हथेली में लिए भागो ,
उफ़ ये दिल्ली , हाय ये दिल्ली ।
सीधे साधे लोगों की यहाँ ,
लोग बना देते हैं खिल्ली ।
धूर्त, ठगों का शहर है ,
उफ़ ये दिल्ली , हाय ये दिल्ली ।
हर कोई बना है सूरमा यहाँ ,
पर शक्ल है जैसे शेख चिल्ली ।
यहाँ का पानी ही कुछ ऐसा ,
उफ़ ये दिल्ली , हाय ये दिल्ली ।
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
गुरुवार, 26 जनवरी 2012
ये सब खेल का हिस्सा हैं , तू बस हाथ बांधे देख ।
जीवन के ये दांव पेंच ,
धक्का मुक्की , ढील खेंच ।
ये सब खेल का हिस्सा हैं ,
तू बस हाथ बांधे देख ।
कभी बर्फ सा ठंडा सब कुछ ,
कभी वसंत की धूप सेंक ।
कभी तपाएगा ये तुझको तम से ,
कभी तैरने को देगा तिनका फेंक ।
ये सब खेल का हिस्सा है ,
तू बस हाथ बांधे देख ।
समय निकल रहा फिसल फिसल ,
जैसे हाथों से जाती है रेत।
अभी दिया है यौवन तुझको ,
आगे पड़नी है छड़ी टेक ।
ये सब खेल का हिस्सा है ,
तू बस हाथ बांधे देख ।
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
बुधवार, 25 जनवरी 2012
त्रेह्सठ वर्ष का हुआ गणतंत्र , किन्तु विचारें , क्या हम सच में हैं स्वतंत्र ?
त्रेह्सठ वर्ष का हुआ गणतंत्र ,
किन्तु विचारें ,
क्या हम सच में हैं स्वतंत्र ?
सड़ते गलते सरकारी तंत्र ,
हर राष्ट्र से लेकर ऋण ।
अपने गौरव का कर समर्पण ,
हम अभी भी हैं परतंत्र ।
स्वदेशी का कोई साथ नहीं करता ,
हिंदी में कोई बात नहीं करता ।
सभ्यता का हो रहा हरण ।
सभी जानते पापी कसाब को ,
कोई न जानता कौन था दानी करण।
त्रेह्सठ वर्ष का हुआ गणतंत्र ,
किन्तु विचारें ,
क्या हम सच में हैं स्वतंत्र ?
राष्ट्र के नेताओं की छवि साफ़ नहीं ,
करोड़ों के घोटाले माफ़ हैं ,
गरीब की चोरी माफ़ नहीं ।
नेता तो "शास्त्री जी" के साथ खतम हो गए ,
बाकी तो बस हैं मुद्रा छापने के यन्त्र ।
त्रेह्सठ वर्ष का हुआ गणतंत्र ,
किन्तु विचारें ,
क्या हम सच में हैं स्वतंत्र ?बढ़ रही है जनसँख्या ,
साथ बढ़ रहे गरीब ।
विवश हों , कोसें नसीब।
दीन हीन भूखे जन ,
उनका कैसा ये गणतंत्र ?
त्रेह्सठ वर्ष का हुआ गणतंत्र ,
किन्तु विचारें ,
क्या हम सच में हैं स्वतंत्र ?अक्षत डबराल
"निःशब्द"
शनिवार, 17 दिसंबर 2011
खानाबदोश
मेरे खानाबदोश होने में कोई दोष नहीं ,
मुझे ज़िन्दगी का नशा है ,
ज़माने का कोई होश नहीं |
यही है मेरे जीने का अंदाज़ ,
और इसका मुझे कोई अफ़सोस नहीं |
कब बैठा हूँ मैं थककर ,
कब चला हूँ मैं रूककर |
रुकना मेरी फितरत नहीं ,
झुकना मेरी फितरत नहीं |
जो है , जैसा है , वही सही ,
नहीं है, वो मेरी किस्मत नहीं |
कितना खुद को कोसोगे ,
कितनी देगो रब को गाली ?
जब खुद लिख सकते हो नसीब को ,
क्यों भरोसे रखते हो खाली ?
दम भर कर क्यों नहीं कहते ,
ज़िन्दगी जियेंगे शेरों वाली |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
मुझे ज़िन्दगी का नशा है ,
ज़माने का कोई होश नहीं |
यही है मेरे जीने का अंदाज़ ,
और इसका मुझे कोई अफ़सोस नहीं |
कब बैठा हूँ मैं थककर ,
कब चला हूँ मैं रूककर |
रुकना मेरी फितरत नहीं ,
झुकना मेरी फितरत नहीं |
जो है , जैसा है , वही सही ,
नहीं है, वो मेरी किस्मत नहीं |
कितना खुद को कोसोगे ,
कितनी देगो रब को गाली ?
जब खुद लिख सकते हो नसीब को ,
क्यों भरोसे रखते हो खाली ?
दम भर कर क्यों नहीं कहते ,
ज़िन्दगी जियेंगे शेरों वाली |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
मंगलवार, 4 अक्टूबर 2011
सड़कों पे भागती ये बेबसियाँ ,
खम्बों से लिपटी सिसकियाँ |
है हर कोई मजबूर लेकिन ,
भगातीं हैं ये मजबूरियां |
यूँ तो कोई किसी का दास नहीं ,
सबकुछ किसी के पास नहीं |
लाख कर कोशिश ख़ास बनो ,
पर तुम आम ही हो , ख़ास नहीं |
दौड़ा लो हसरत के घोड़े ,
पर सह लेना नसीब के कोड़े |
जब तुलेंगे ये दोनों कहीं ,
भारी होंगे कोड़े , और हलके घोड़े |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
खम्बों से लिपटी सिसकियाँ |
है हर कोई मजबूर लेकिन ,
भगातीं हैं ये मजबूरियां |
यूँ तो कोई किसी का दास नहीं ,
सबकुछ किसी के पास नहीं |
लाख कर कोशिश ख़ास बनो ,
पर तुम आम ही हो , ख़ास नहीं |
दौड़ा लो हसरत के घोड़े ,
पर सह लेना नसीब के कोड़े |
जब तुलेंगे ये दोनों कहीं ,
भारी होंगे कोड़े , और हलके घोड़े |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
शनिवार, 6 अगस्त 2011
कैसे जान पहचान करूँ ?
एक अजनबी सा है दिन, कैसे जान पहचान करूँ ?
एक अजनबी सी है पहर, कैसे जान पहचान करूँ ?
एक अजनबी सा है साया, कैसे जान पहचान करूँ ?
एक अजनबी सी है हवा, कैसे जान पहचान करूँ ?
एक अजनबी सी है फिज़ा, कैसे जान पहचान करूँ ?
एक अजनबी सा है समां, कैसे जान पहचान करूँ ?
एक अजनबी सी है शाम, कैसे जान पहचान करूँ ?
एक अजनबी सा है जाम, कैसे जान पहचान करूँ ?
एक अजनबी सा है नाम, कैसे जान पहचान करूँ ?
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
एक अजनबी सी है पहर, कैसे जान पहचान करूँ ?
एक अजनबी सा है साया, कैसे जान पहचान करूँ ?
एक अजनबी सी है हवा, कैसे जान पहचान करूँ ?
एक अजनबी सी है फिज़ा, कैसे जान पहचान करूँ ?
एक अजनबी सा है समां, कैसे जान पहचान करूँ ?
एक अजनबी सी है शाम, कैसे जान पहचान करूँ ?
एक अजनबी सा है जाम, कैसे जान पहचान करूँ ?
एक अजनबी सा है नाम, कैसे जान पहचान करूँ ?
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
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