सचमुच कितना गूढ़ सवाल है ज़िन्दगी |
कहीं शान्ति तो कहीं बवाल है ज़िन्दगी |
सड़क किनारे झुग्गी में, बेबस, लाचार है ज़िन्दगी |
कहीं शानो शौकत भरी,चाँद लगे चार है ज़िन्दगी |
कहीं बेचैनी, चिंता भरी, नींद की गोली है ज़िन्दगी |
कहीं फुटपाथ पे मस्त, निश्चिंत, भोली है ज़िन्दगी |
जवान खून का जोश लिए, कहीं रफ्तार है ज़िन्दगी |
कहीं ढलती शाम सी, झुर्रियों का हार है ज़िन्दगी |
दीन दुनिया से परे ,कहीं सन्यास है ज़िन्दगी |
कहीं मादक, रसिक, कोई उपन्यास है ज़िन्दगी |
कोने में ढका, सहेजा हुआ,पुराना समान है ज़िन्दगी |
कहीं रोज़ आकाश की, इक नई उड़ान है ज़िन्दगी |
कहीं हर घर में जाना हुआ , मशहूर नाम है ज़िन्दगी |
मगर कहीं बेनामी के अंधेरों में, गुमनाम है ज़िन्दगी |
बंधू, आपकी कविता को मैंने कुछ इस तरह गजल के अंदाज में पढा ;
जवाब देंहटाएंसचमुच कितना गूढ़ सवाल है ज़िन्दगी |
कहीं शान्ति तो कहीं बवाल है ज़िन्दगी |
सड़क किनारे झुग्गी में, बेबस, लाचार है ज़िन्दगी |
कहीं शानो शौकत भरी,चाँद लगे चार है ज़िन्दगी |
कहीं बेचैनी, चिंता भरी, नींद की गोली है ज़िन्दगी |
कहीं फुटपाथ पे मस्त, निश्चिंत, भोली है ज़िन्दगी |
जवान खून का जोश लिए, कहीं रफ्तार है ज़िन्दगी |
कहीं ढलती शाम सी, झुर्रियों का हार है ज़िन्दगी |
दीन दुनिया से परे ,कहीं सन्यास है ज़िन्दगी |
कहीं मादक, रसिक, कोई उपन्यास है ज़िन्दगी |
कोने में ढका, सहेजा हुआ,पुराना समान है ज़िन्दगी |
कहीं रोज़ आकाश की, इक नई उड़ान है ज़िन्दगी |
कहीं हर घर में जाना हुआ , मशहूर नाम है ज़िन्दगी |
मगर कहीं बेनामी के अंधेरों में, गुमनाम है ज़िन्दगी |
dhnyavaad maanyavar
जवाब देंहटाएंaap hamesha hi mere bade ki tarah mera maargdarshan karte hain.
ye drishti bani rahe bass.