अधिकाधिक भारतीयों के अनुरूप अपनी दिनचर्या का भी, " सैशे " एक अभिन्न अंग है ,
उसको ही लेकर, थोड़ा सा उसकी प्रसिद्धी का, अनुचित उपयोग कर रहा हूँ ...
कठोर, निठुर ये जग है ,
विषाक्त, विषैले जन सब हैं |
कैसे मिले उन्मुक्त जीवन ऐसे में ,
ले लीजे , जी लीजे , जीवन "सैशे" में|
कर लगता है श्वांस पर ,
घोड़ा मैत्री रखता घास पर |
कितना भी व्यय करिए पैसे में ,
मिलेगा यही ,जीवन "सैशे" में |
सप्ताह , माह , जीवन पर्यंत ,
इसके श्रृंगार का युद्ध, द्वंद्व |
करते जों बन पड़ता जैसे में ,
पर फल इतना सा ? जीवन "सैशे" में|
व्यतीत करिए हंस कर या रोकर ,
होनी तो रहेगी ही हो कर |
कब आयें यमराज विचित्र वेशे में ,
निचोड़ डाले बचा खुचा, जीवन "सैशे" में |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
व्यतीत करिए हंस कर या रोकर ,
जवाब देंहटाएंहोनी तो रहेगी ही हो कर |
कब आयें यमराज विचित्र वेशे में ,
निचोड़ डाले बचा खुचा, जीवन "सैशे" में |
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बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है!