अपने आज के टूटे हुए (इश्वर की कृपा से) केवल मोच खाए पैर पर एक गढ़वाली कविता का प्रयास ,
हे मेनेजर बोडाजी ,
हला टीम लीड भैजी |
मिन सुद्दी नि मारी छुट्टी ,
बल मेरु खुट्टा छ टुटी |
आजौं हस्पताल गयी थौ ,
वखी एक्स रा करयाई |
उ मर्जाणु मा कछु नि आई ,
पर आप मेरा दगड़ा न करा कुट्टी ,
मिन सुद्दी नि मारी छुट्टी |
मी जानदौं काम बीजाण छ ,
पर सबसा पहली अपना प्राण छ |
यूँ न हुई कदी मेरा गैल ,
काम का वास्ता , गुम हुई लटटी पट्टी ,
मिन सुद्दी नि मारी छुट्टी |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
nice post
जवाब देंहटाएंGood one :)
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