शनिवार, 24 जुलाई 2010

मैंने,खुश रहना सीख लिया है |

रो-रो न थकता है जग ,
चीखते, चिल्लाते हैं सब |
ऐसी सभा में मैंने ,
चुप रहना सीख लिया है |
मैंने, खुश रहना सीख लिया है |

जब सब ही यहाँ विद्वान हैं ,
छलक छलक आता ज्ञान है |
इन सब पंडों के बीच मैंने ,
मूर्ख रहना सीख लिया है |
मैंने, खुश रहना सीख लिया है |

मुद्रा के पीछे भाग रहे सब ,
निन्यानवे के फेर में जाग रहे सब |
इस मृग तृष्णा से परे मैंने ,
संतुष्ट रहना सीख लिया है |
मैंने, खुश रहना सीख लिया है |

आगे बढ़ने की होड़ हो ,
या पीछे होने की चिल्ल पौं |
इन सबसे ऊपर उठ मैंने ,
शांत चित्त रहना सीख लिया है |
मैंने, खुश रहना सीख लिया है |

आज लाभ है , कल हानि है ,
धूप- छाँव , आनी- जानी है |
एक समान भाव से मैंने ,
सुख - दुःख सहना सीख लिया है |
मैंने, खुश रहना सीख लिया है |

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

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