रो-रो न थकता है जग ,
चीखते, चिल्लाते हैं सब |
ऐसी सभा में मैंने ,
चुप रहना सीख लिया है |
मैंने, खुश रहना सीख लिया है |
जब सब ही यहाँ विद्वान हैं ,
छलक छलक आता ज्ञान है |
इन सब पंडों के बीच मैंने ,
मूर्ख रहना सीख लिया है |
मैंने, खुश रहना सीख लिया है |
मुद्रा के पीछे भाग रहे सब ,
निन्यानवे के फेर में जाग रहे सब |
इस मृग तृष्णा से परे मैंने ,
संतुष्ट रहना सीख लिया है |
मैंने, खुश रहना सीख लिया है |
आगे बढ़ने की होड़ हो ,
या पीछे होने की चिल्ल पौं |
इन सबसे ऊपर उठ मैंने ,
शांत चित्त रहना सीख लिया है |
मैंने, खुश रहना सीख लिया है |
आज लाभ है , कल हानि है ,
धूप- छाँव , आनी- जानी है |
एक समान भाव से मैंने ,
सुख - दुःख सहना सीख लिया है |
मैंने, खुश रहना सीख लिया है |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
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