मेरा घर , मेरा परिवार , मैं ,
ये कुशल हैं , तो मैं चंगा हूँ |
मेरी यही सोच है ,
मैं हूँ आज का मानव , मैं अँधा हूँ |
पहले कुटुंब होते थे ,
संबंध लम्ब , अति लम्ब होते थे |
किन्तु सब धूमिल इतिहास है ,
कूपमंडूक बन , कुँए के रंग में रंगा हूँ |
मैं हूँ आज का मानव , मैं अँधा हूँ |
कभी मुझे प्रभु का भय था ,
अब प्रभु को मुझसे भय है |
पाप कर सब सिद्धियाँ पाकर ,
मैं विष्णु, मैं महेश, मैं ही ब्रह्मा हूँ |
मैं हूँ आज का मानव , मैं अँधा हूँ |
किन्तु न्याय का वार अकाट्य है ,
भान है मुझे , मेरे जों ये नाट्य हैं ,
इनका प्रतिफल अवश्य मिलेगा |
भर गया है घड़ा, तब भी धुन में रमा हूँ ,
मैं हूँ आज का मानव , मैं अँधा हूँ |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
कभी मुझे प्रभु का भय था ,
जवाब देंहटाएंअब प्रभु को मुझसे भय है |
पाप कर सब सिद्धियाँ पाकर ,
मैं विष्णु, मैं महेश, मैं ही ब्रह्मा हूँ |
मैं हूँ आज का मानव , मैं अँधा हूँ |
aaj ka saty, sahmat Thanks for this artcle.
kya baat hai..........
जवाब देंहटाएंdhanyavaad aap sabka
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