मंगलवार, 17 अगस्त 2010

क्यूँ हमेशा ?

घास दबती है ,रस्ते बनते हैं |
उन रस्तों पर ,सब चलते हैं |
कभी खुद भी दबा कर देखो घास को ,
बनी हुई पगडंडियों पर ही ,
क्यूँ हमेशा चलते हो ?

नसीब उसका भी है , तुम्हारा भी |
सिर्फ अँधेरा नहीं , है उजाला भी |
अपने आप को खुश रखो ,
दूसरों की ख़ुशी देख कर ,
क्यूँ हमेशा जलते हो ?

एक ईमान रखो, एक ही ध्येय |
एक व्यवहार रखो , एक ही उद्देश्य |
जब कभी मौका मिलता है ,
तुरंत अपना दीन इमान ,
क्यूँ हमेशा बदलते हो ?

खुद को खूब काबिल करो |
गिनती में शामिल करो |
अभी जब ढूंढ होती है ,
अपना छोटा सा वजूद लिए ,
क्यूँ हमेशा निकलते हो ?

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

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