सोमवार, 23 अगस्त 2010

ख्वाब ...

पलकों के छज्जों पर,
कुछ ख्वाब टंगा दिए हैं|
तूफां आये तो हिलते हैं |
टूट जाने का डर तो है ,
फिर भी सज़ा कर रखता हूँ ,
मुश्किल से मिलते हैं |

जब भी कोई मेरी आँखें देखता ,
कहता, हमेशा सुर्ख क्यों हैं ?
मेरा एक ही जवाब होता ,
एक उम्र की थकान है इनमें |
ख्वाब लिए है बड़े बड़े,
मुश्किल से ढुलते हैं |

पर इन सब का कोई गम नहीं ,
ख्वाब देखे हैं, और देखूंगा |
खुद को किस्मत वाला कहता हूँ ,
कहता रहा , कहता रहूँगा |
की मेरे ख्वाब वाले नैन खुले हैं ,
मुश्किल से खुलते हैं |

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

9 टिप्‍पणियां:

  1. पलकों के छज्जों पर,
    कुछ ख्वाब टंगा दिए हैं|
    तूफां आये तो हिलते हैं |
    टूट जाने का डर तो है ,
    फिर भी सज़ा कर रखता हूँ ,
    मुश्किल से मिलते हैं

    behad marmsparshee likha hai. badhai

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  2. अच्‍छी रचना .. रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!

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  3. बहुत बढ़िया रचना..

    रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ.

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  4. सभी मान्य जनों का धन्यवाद ,
    रक्षाबँधन की आप सभी को भी हार्दिक शुभकामनायें |

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  5. प्रसंशा के लिए धन्यवाद ,
    मेरा उत्साह वर्धन हुआ है ,
    और अच्छा लिखने का प्रयास करूँगा |

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  6. aksht ji aadaab plken,chjje or fir khvaab kaa sngm or iskaa alfazon ki jaadugiri kr jo prdrshn kiyaa he voh bhut bhut khubsurt he bdhaayi ho. akhtar khan akela kota rajsthan

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