शनिवार, 28 अगस्त 2010

योग्य वर !

मेरे एक मित्र ने अभी अभी नौकरी बदली , उसका वेतन ३ से ५ लाख प्रति वर्ष हो गया|उसे लगा, ये विवाह के लिए समुचित होगा, किन्तु नहीं , उस बिचारे की व्यथा पर एक साहित्यिक प्रयास |

आवयश्कता है , एक योग्य वर की ,
जों सात लाख, या अधिक कमाता हो |
हो धनवान घर परिवार से ,पर मांस मच्छी न खाता हो !

लड़की को हमारी ,रानी बना के रखे|
ऊंचे उसके विचार हों ,सादा जीवन जीता हो|
हो शाही खानदान ,पर दारु शराब न पीता हो !

शादी के बाद , सारे नाज़ नखरे सहे |
लड़की का मन रखे , उससे बेहद प्यार करे|
जों लड़की के शौक हों ,लुटाने को सबकुछ तैयार करे |

लड़के के फ़ालतू दोस्त न हों |
जों दोनों को , आ आ कर तंग करें |
अब सुखी जीवन यापन , बस ये दोनों संग करें |

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ये शर्तें सुनकर , मेरे मित्र का अहम जाग उठा ,
बोला आपकी शर्तें सुनी , कुछ कहना चाहूँगा ,
अपनी तरफ से उनके , उत्तर देना चाहूँगा |

"जों सात लाख या अधिक कमाता है "
वो ही कर सकता है , जों दो नौकरी बदल चुका है ,
और तीसरी में जाता है|

"लड़की को हमारी , रानी बना के रखे"
मैं कोई रजवाड़ा नहीं , जों रानी बना ही दूंगा ,
जितना होगा जेब में , उतना ही दूंगा |

"हो शाही खानदान , पर दारु शराब न पीता हो"
ऐसा सोच रहें हैं आप , जैसे मैं पुरषोत्तम श्रीराम,
और आपकी बेटी , पतित पावन सीता हो |

आपको लड़का नहीं , देवदूत चाहिए |
मुझसे ये न होगा ,
मुझे क्षमा चाहिए , मुझे क्षमा चाहिए |

- आपके लिए अरिंदम "बॉस"

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

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