सोमवार, 20 सितंबर 2010

सड़कें |

सरपट भागती , एक दुसरे को काटती ,
बेजान कितनी सड़कें, एक ज़माने से दौड़ रहीं हैं |
इनकी कोई मंजिल नहीं , या शायद कभी रही हो |

इससे पहले ये रास्ते हुआ करती थीं |
तब इनको अपने मुसाफिर का इलम था ,
पर अब ये सड़कें हैं , बाखुदा एक नाम के साथ |

इनके रंग जैसा ही दिल हो गया है इनका |
काला और कठोर , आप चल तो लोगे ,
पर जल्द ही आपके पैर दुखेंगे |

शहर की बदलती सूरत की गवाह हैं ये |
इतने सितम देख सहम गयी होंगी ,
तभी इन्हें कुछ महसूस नहीं होता , बस भाग रही हैं |

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

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