बचपन से आज तक ,
सुबह से रात तक ,
हम डरते आये हैं |
बस समझौते करते आये हैं |
कमियों से , खुशियों से |
सदियों से, परिस्थितियों से |
अपनी हार करते आये हैं ,
बस समझौते करते आये हैं |
कभी धूप में नंगे पाँव चले हैं ,
कभी बरसात में बेछांव चले हैं |
अपने घाव छुपाया करते आये हैं ,
बस समझौते करते आये हैं |
कुछ पाने को दुआ करते हैं |
खुद से जों हुआ , करते हैं |
कुछ दुआएं भुलाया करते आये हैं ,
बस समझौते करते आये हैं |
यूँ ख्वाब देखने की कीमत नहीं होती ,
पर अब इन्हें देखने की हिम्मत नहीं होती |
इनका किराया अदा करते आये हैं ,
बस समझौते करते आये हैं |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
"यूँ ख्वाब देखने की कीमत नहीं होती ,
जवाब देंहटाएंपर अब इन्हें देखने की हिम्मत नहीं होती |"
उत्तम !!