बुधवार, 17 जून 2009

सपने !

जो कभी देखे थे मैंने ,
वे सपने अब भी नए हैं |
बढ़ते बढ़ते अब मेरा ,
एक हिस्सा बन गए हैं |

जो होता , करता , लिखता हूँ ,
सब पर इनका प्रभाव है |
सपने देखना , सच करने की कोशिश करना ,
अब मेरा स्वभाव है |

इनके बिना जीवन में ,
मज़ा भी तो कुछ नहीं |
मानूँ तो बहुत कुछ है इनमें ,
न मानूँ तो कुछ नहीं |

इन सपनों के खातिर जीना ,
सच, कितना अच्छा होता है |
पाँव जमीं पर पड़ते नहीं ,
जब कोई सपना सच्चा होता है |

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

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