जो कभी देखे थे मैंने ,
वे सपने अब भी नए हैं |
बढ़ते बढ़ते अब मेरा ,
एक हिस्सा बन गए हैं |
जो होता , करता , लिखता हूँ ,
सब पर इनका प्रभाव है |
सपने देखना , सच करने की कोशिश करना ,
अब मेरा स्वभाव है |
इनके बिना जीवन में ,
मज़ा भी तो कुछ नहीं |
मानूँ तो बहुत कुछ है इनमें ,
न मानूँ तो कुछ नहीं |
इन सपनों के खातिर जीना ,
सच, कितना अच्छा होता है |
पाँव जमीं पर पड़ते नहीं ,
जब कोई सपना सच्चा होता है |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
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