आज हर तरफ़ है यह बहार ,
आज नकद , कल उधार |
दोस्ती यारी सब बिकाऊ है ,
नीलाम हुए इश्क और प्यार |
दो मीठे बोल न मिलते ,
सब कुछ , आज नकद , कल उधार |
आपसी विश्वास का गला घुँट गया है ,
मरणासन्न हुए भाईचारा और सौहार्द |
पर ये पुरानी बातें हैं यार ,
नया फैशन , आज नकद , कल उधार |
इस निठुर दुनिया को इसमें ,
आता बहुत लुत्फ है |
आजकल इसका नारा ,
आज नकद , कल उधार ,
परसों मुफ्त है !
इसलिए भाइयों मेरी बातों पे मत जाना |
परसों सब मुफ्त मिलेगा ,
परसों आना |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
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