सुन दोस्त , ग़ज़ल ये वफ़ा की ,
मैं तेरे नाम करता हूँ |
सामने तो कुछ कह न सका ,
ऐसे ही बयाँ करता हूँ |
जब पास था तू ,
न होश था कि,
तू इतना अज़ीज़ है |
और इतना दूर मुझसे ,
तू अब हो गया है |
हर चाह ,हर इंतज़ार का ,
तू सबब हो गया है |
जो मिले तू तो मुझसे ,
सब कहना चाहता हूँ |
अब न जुदा हों ,
ऐसे मिलना चाहता हूँ |
देख देख तुझको जीभर ,
लफ्जों के जाम भरता रहूँ |
तू सामने बैठा रहे ,
मैं आंखों से पीता रहूँ |
अक्षत डबराल
nashaa ho gaya bhaiya .............bas madhoshi ka aalam hai .......bahut bahut bahut .............bahut bahut badhiya
जवाब देंहटाएंdhanyavaad bandhu
जवाब देंहटाएंye bhai kis ke liye hai....hmmmm
जवाब देंहटाएंbut simply outrageous.
kiske liye hai ye pata nahi
जवाब देंहटाएंbut thanks for the comment
अब न जुदा हों ,
जवाब देंहटाएंऐसे मिलना चाहता हूँ |
मिलन का यह अन्दाज़ अच्छा लगा