मैं आज इस जग से ,
दूर भागना चाहता हूँ |
ख़ुद में उठते सवालों को ,
फूंक डालना चाहता हूँ |
अकेला था , अकेला ही अच्छा हूँ |
मुझे न कोई यार चाहिए |
सूनापन ही फबता मुझको ,
मुझे न कोई प्यार चाहिए |
कबसे हूँ यूँ तनहा , अकेला |
तुमसे नही कह सकता |
इस संसार के आडम्बर पर ,
और नही सह सकता |
इसलिए , ताले में बंद हो चाबी ,
फेंक डालना चाहता हूँ |
मैं आज इस जग से ,
दूर भागना चाहता हूँ |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
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