मेरा जीवन कुछ नही ,
ख़ुद लिखी एक किताब है |
सफलताएं बहुत कम हैं शायद ,
गलतियां बेहिसाब हैं |
धीरे धीरे इस किताब में ,
कितने किरदार जुड़ते जाते हैं ?
दिन आते , दिन जाते ,
पन्ने बढ़ते जाते हैं !
कभी जो इसे उठाकर ,
मैं पन्ने पलटता हूँ |
यादों के दरिये में ,
मैं डूबता उतरता हूँ |
खतम हो यह किताब ,
अभी वहां नही पहुँचा हूँ |
हाँ , पर इसके कई अध्याय ,
मैं ज़रूर लिख चुका हूँ |
पढ़कर इसको लगता ,
फ़िर से सब जी रहा हूँ |
अमृत सा जीवन रस ,
मस्त हो पी रहा हूँ |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
सही मे आपने आत्म मंथन को एक बहुत ही सुन्दर कविता के रुप प्रस्तुत किया है ..............सही मे जिन्दगी एक किताब ही होती है .....जो आप पीछे जाकर पढ़ सकते है और डुब भी सकते है अपने भूत के पन्नो मे.....सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंdhanyavaad maanyavar
जवाब देंहटाएंये जो जिन्दगी की किताब है
जवाब देंहटाएंये किताब भी क्या किताब है :)
वीनस केसरी
Dabral sahab aapne to rola hi kaat diya..
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