कुछ लिखता हूँ , लिखकर ,
भूल जाता हूँ |
खींच शब्दों के दरिये को ,
उसमें डूब जाता हूँ |
जब तक कलम चलती ,
लिखता , जगता हूँ |
रुकते ही इसके ,
फ़िर सो पड़ता हूँ |
इस दुनिया से इतर ,
एक दुनिया है मेरी |
मैं सुख बस,
उसमें ही पाया करता हूँ |
अक्सर उसमें ही रहता हूँ |
इस दुनिया में तो ,
बस सोने आया करता हूँ |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
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