शुक्रवार, 26 जून 2009

सुन दोस्त |

सुन दोस्त , ग़ज़ल ये वफ़ा की ,
मैं तेरे नाम करता हूँ |
सामने तो कुछ कह न सका ,
ऐसे ही बयाँ करता हूँ |

जब पास था तू ,
न होश था कि,
तू इतना अज़ीज़ है |

और इतना दूर मुझसे ,
तू अब हो गया है |
हर चाह ,हर इंतज़ार का ,
तू सबब हो गया है |

जो मिले तू तो मुझसे ,
सब कहना चाहता हूँ |
अब न जुदा हों ,
ऐसे मिलना चाहता हूँ |

देख देख तुझको जीभर ,
लफ्जों के जाम भरता रहूँ |
तू सामने बैठा रहे ,
मैं आंखों से पीता रहूँ |

अक्षत डबराल

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