दुनिया में , कुछ लोग बस जीने को जीते हैं ,
और कुछ, सच में जी जाते हैं |
कुछ मानते हैं ज़िन्दगी को कड़वा घूँट ,
और कुछ, खुश हो पी जाते हैं |
कुछ के लिए गिलास आधा खाली है ,
और कुछ, उसे आधा भरा पाते हैं |
कुछ के लिए ये है बस एक बोझ ,
और कुछ, इसका जश्न मनाते हैं |
कुछ मानते हैं इसे बंद संदूक ,
और कुछ, खुली किताब बनाते हैं |
कहने को तो सब जीते हैं ,
और कुछ, सही में जी जाते हैं |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
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