ज़िन्दगी टिक टिक घड़ी सी चलती ,
क्या जागा , क्या सोया ?
एक एक कर दिन ख़त्म हो रहे ,
क्या पाया , क्या खोया ?
याद करने को है बहुत कुछ ,
क्या हंसा , क्या रोया ?
तोला कभी ये क्या तूने
क्या पाया , क्या खोया ?
अपने ही है कल तेरा ,
क्या काटा , क्या बोया ?
कहाँ हैं तेरे बही खाते ,
क्या पाया , क्या खोया ?
कुछ होंगे क़र्ज़ तर्ज़ पर ,
क्या चुका , क्या ढोया ?
आ करले हिसाब ज़िन्दगी से ,
क्या पाया , क्या खोया ?
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
बस यूँ ही चलता रहता है ज़िंदगी का हिसाब ...अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशुभागमन...!
जवाब देंहटाएंआपके हिन्दी ब्लागिंग के अभियान को सफलतापूर्वक उन्नति की राह पर बनाये रखने में मददगार 'नजरिया' ब्लाग की पोस्ट नये ब्लाग लेखकों के लिये उपयोगी सुझाव. और ऐसे ही अन्य ब्लागर्स उपयोगी लेखों के साथ ही अपने व अपने परिवार के स्वास्थ्योपयोगी जानकारियों से परिपूर्ण 'स्वास्थ्य-सुख' ब्लाग की पोस्ट बेहतर स्वास्थ्य की संजीवनी- त्रिफला चूर्ण एक बार अवश्य देखें और यदि इन दोनों ब्लाग्स में प्रस्तुत जानकारियां अपने मित्रों व परिजनों सहित आपको अपने जीवन में स्वस्थ व उन्नति की राह में अग्रसर बनाये रखने में मददगार लगे तो भविष्य की उपयोगिता के लिये इन्हें फालो भी अवश्य करें । धन्यवाद के साथ शुभकामनाओं सहित...
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 17 - 05 - 2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.blogspot.com/
अपने ही है कल तेरा ,
जवाब देंहटाएंक्या काटा , क्या बोया ?
कहाँ हैं तेरे बही खाते ,
क्या पाया , क्या खोया ?
bahut hi gahree baat
सुन्दर अभिव्यक्ति है
जवाब देंहटाएंvicharniy rachna...
जवाब देंहटाएंdhanyavaad aap maanya jano ka!
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