शनिवार, 14 मई 2011

क्या पाया , क्या खोया ?

ज़िन्दगी टिक टिक घड़ी सी चलती ,
क्या जागा , क्या सोया ?
एक एक कर दिन ख़त्म हो रहे ,
क्या पाया , क्या खोया ?

याद करने को है बहुत कुछ ,
क्या हंसा , क्या रोया ?
तोला कभी ये क्या तूने
क्या पाया , क्या खोया ?

अपने ही है कल तेरा ,
क्या काटा , क्या बोया ?
कहाँ हैं तेरे बही खाते ,
क्या पाया , क्या खोया ?

कुछ होंगे क़र्ज़ तर्ज़ पर ,
क्या चुका , क्या ढोया ?
आ करले हिसाब ज़िन्दगी से ,
क्या पाया , क्या खोया ?

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

7 टिप्‍पणियां:

  1. बस यूँ ही चलता रहता है ज़िंदगी का हिसाब ...अच्छी प्रस्तुति

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  2. शुभागमन...!
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    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  4. अपने ही है कल तेरा ,
    क्या काटा , क्या बोया ?
    कहाँ हैं तेरे बही खाते ,
    क्या पाया , क्या खोया ?
    bahut hi gahree baat

    जवाब देंहटाएं