कुछ ख्वाब देखे थे मैंने ,
उसमें हम तुम संग थे |
पर वो तो बस ख्वाब ही थे ,
इन्द्रधनुष थे , पर बेरंग थे |
अन्दर से जाने कैसे हों ,
बाहर खाए जंक थे |
कुछ दीखते ठीक ठाक ,
कुछ बेहद बेढंग थे |
पर ये ख्वाब ही तो दौलत हैं ,
इनके बिना सब रंक थे |
कुछ ख्वाब देखे थे मैंने ,
उसमें हम तुम संग थे |
अक्षत डबराल
"निःशब्द "
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