आदत से मजबूर है ,
बस ख्वाब देखता है आदमी |
चाहे उसे जों दूर है ,
बस ख्वाब देखता है आदमी |
सच्चाई से आँख चुराता ,
बस ख्वाब देखता है आदमी |
जों कभी हो न पाता ,
बस ख्वाब देखता है आदमी |
चार दिन कि ज़िन्दगी है ,
बस ख्वाब देखता है आदमी |
कभी हंसती कभी रोती है ,
बस ख्वाब देखता है आदमी |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
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