रात रात भर , जिस चीज़ को लेकर ,
मैं जाग रहा था |
कुछ नहीं , मेरा ही साया था ,
मैं खुदसे ही भाग रहा था |
कितनी दूर , कितनी आगे जाना था ,
क्यूँ मैं बगलें झाँक रहा था ?
मेरा ही फ़र्ज़ था , मुझे ही करना था ,
और मैं खुदसे ही भाग रहा था |
खुद से किया था जों वादा ,
कहाँ मुझे अब याद रहा था ?
अपने आप से अनजान बन ,
मैं खुदसे ही भाग रहा था |
कभी आइना देखा , याद आया ,
मेरा चेहरा ऐसा नहीं था , जैसा आज दिख रहा था |
होना ही था ऐसा तो जब ,
मैं खुद से ही भाग रहा था |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
vaah bhaai vaah aek jzbaat ko jhinjhhodti kvitaa ne to jzbaat hilaa diye ...akhtar khan akela kota rajsthah
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