रोज़ रोज़ मुझसे लड़ता है , आखिर ये "मैं" कौन है ?
बात बात में बिगड़ता है , आखिर ये "मैं" कौन है ?
हर चीज़ में अपनी राय देता , आखिर ये "मैं" कौन है ?
हरदम अहम् कि दुहाई देता , आखिर ये "मैं " कौन है ?
मेरे साथ ही क्यूँ है सटा, आखिर ये "मैं" कौन है ?
कैसे मिला मेरा पता , आखिर ये "मैं" कौन है ?
क्यूँ मैं इसकी बात सुनूँ , आखिर ये "मैं" कौन है ?
क्यूँ न मैं कोई और बनूँ , आखिर ये "मैं" कौन है ?
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
सशक्त अभिव्यक्ति ....
जवाब देंहटाएंपूरी की पूरी रचना दिल पर दस्तक देने में समर्थ |
वाह पहली बार पढ़ा आपको बहुत अच्छा लगा....
जवाब देंहटाएंकभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
http://sanjaybhaskar.blogspot.com/