बुधवार, 6 जुलाई 2011

आखिर ये "मैं" कौन है ?

रोज़ रोज़ मुझसे लड़ता है , आखिर ये "मैं" कौन है ?
बात बात में बिगड़ता है , आखिर ये "मैं" कौन है ?

हर चीज़ में अपनी राय देता , आखिर ये "मैं" कौन है ?
हरदम अहम् कि दुहाई देता , आखिर ये "मैं " कौन है ?

मेरे साथ ही क्यूँ है सटा, आखिर ये "मैं" कौन है ?
कैसे मिला मेरा पता , आखिर ये "मैं" कौन है ?

क्यूँ मैं इसकी बात सुनूँ , आखिर ये "मैं" कौन है ?
क्यूँ न मैं कोई और बनूँ , आखिर ये "मैं" कौन है ?

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

2 टिप्‍पणियां:

  1. सशक्त अभिव्यक्ति ....
    पूरी की पूरी रचना दिल पर दस्तक देने में समर्थ |

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  2. वाह पहली बार पढ़ा आपको बहुत अच्छा लगा....
    कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com/

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