लाख दुःख सहने होंगे ,
सदा कांटे ही लगे होंगे ,
पर इन समान न तुच्छ बनो ,
फूलो , खिलो , पुष्प बनो !
एक से ही दिखते हैं सब ,
विष उगलते अजब अजब ,
इनसे तो भिन्न कुछ बनो ,
महको , चहको , पुष्प बनो !
इनके मर्म में नमी नहीं ,
द्वेष अग्नि कि कमी नहीं ,
तुम न हृद्य शुष्क बनो ,
दुर्लभ , सुरभित , पुष्प बनो !
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
बहुत सुन्दर सन्देश देती अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंएक से ही दिखते हैं सब ,
जवाब देंहटाएंविष उगलते अजब अजब ,
इनसे तो भिन्न कुछ बनो ,
महको , चहको , पुष्प बनो !
kitni achhi baat kahi