शुक्रवार, 24 जून 2011

पुष्प बनो !

लाख दुःख सहने होंगे ,
सदा कांटे ही लगे होंगे ,
पर इन समान न तुच्छ बनो ,
फूलो , खिलो , पुष्प बनो !

एक से ही दिखते हैं सब ,
विष उगलते अजब अजब ,
इनसे तो भिन्न कुछ बनो ,
महको , चहको , पुष्प बनो !

इनके मर्म में नमी नहीं ,
द्वेष अग्नि कि कमी नहीं ,
तुम न हृद्य शुष्क बनो ,
दुर्लभ , सुरभित , पुष्प बनो !

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर सन्देश देती अच्छी प्रस्तुति

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  2. एक से ही दिखते हैं सब ,
    विष उगलते अजब अजब ,
    इनसे तो भिन्न कुछ बनो ,
    महको , चहको , पुष्प बनो !
    kitni achhi baat kahi

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