शनिवार, 23 जुलाई 2011

I always

I always chased success,
success never chased me.
This makes it far greater,
and me, smaller as i can be.

I always chased contentment,
contentment never chased me.
Had i been content with things in hand,
I would have been left far behind.

I always chased dedication,
dedication never chased me.
All of it i have, is just traces,
much is required,to win life's races.

-Akshat Dabral

गुरुवार, 21 जुलाई 2011

Excellence they say,
comes at a price.
Not just once,
you need to try twice,thrice.

You never know,
what all it takes.
But you should always know,
what is at stake.

Try been different,
each time you fail.
For stormy might be the sea,
but the boat must sail.
but the boat must sail ...

-Akshat Dabral

सोमवार, 18 जुलाई 2011

बस चंद सरफ़रोश चाहिए |

दया नहीं , अनुदान नहीं ,
बस शक्ति और जोश चाहिए |
इस देश को कुछ नहीं ,
बस चंद सरफ़रोश चाहिए |

मेहनत और इमानदारी का जों इत्र लगाते ,
सुबह कफ़न पहन कर जों निकल जाते |
ऐसे रणबाकुरों का एक कोष चाहिए ,
इस देश को कुछ नहीं ,
बस चंद सरफ़रोश चाहिए |

विपरीत स्तिथि में न डिगे जों ,
ऐसे कदम ठोस चाहिए |
हर एक ललकार को अब ,
सिंहनाद का उद्घोष चाहिए |
इस देश को कुछ नहीं ,
बस चंद सरफ़रोश चाहिए |

विरोध में उठती हुई ,
हर आवाज़ खामोश चाहिए |
इस देश को कुछ नहीं ,
बस चंद सरफ़रोश चाहिए |

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

अक्षत डबराल

शनिवार, 16 जुलाई 2011

पाने की ख़ुशी

जीवन पाने की ख़ुशी,पूछिए एक पेड़ बाँझ से |
सुहागन होने की ख़ुशी,पूछिए एक सुन्दर सांझ से |

सफलता पाने की ख़ुशी,पूछिए एक चींटी से |
घर लौट आने की ख़ुशी,पूछिए एक पंछी से |

सहारा पाने की ख़ुशी,पूछिए एक नाज़ुक बेल से |
अंत हो जाने की ख़ुशी,पूछिए बच्चों के खेल से |

सूर्य पाने की ख़ुशी,पूछिए एक सूरजमुखी से |
और ख़ुशी पाने की ख़ुशी,पूछिए एक इंसान दुखी से |

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

शुक्रवार, 15 जुलाई 2011

कुछ मदिरा का दोष था ,
हमें भी कम होश था |
आस पास देखा तो ज़रूर ,
पर न दिखा कोई जों दोस्त था |

एक साथ की आस थी ,
पर परछाई तक न पास थी |
किससे कहते अपने सपने , दर्द ,
मेरे साथ बस मेरी धड़कन , मेरी सांस थी |

पर किस्मत , नीयत , होनी ,
किस किस को कोसते रहें |
जों होना था , वो हो गया ,
हम आप बस बैठे सोचते रहें |

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

शनिवार, 9 जुलाई 2011

मैंने खुद को आईने में देखा , तो ये ख्याल आये

अरे आईने में रहने वाले भाई साहब ,
आपका जुड़वां भाई दिखा था आज ,
क्या कुछ रहा है चल ,
बहुत खुश रहता है आजकल |

मुझे देख के आईने में ,
नज़रें चुरा लेता है सफाई से |
क्या है ये माज़रा ,
कभी पूछिए अपने भाई से |

मुझसे कुछ कहता नहीं ,
आपसे तो कहता ही है |
मेरा तो बस वो हमशक्ल है ,
आपसे तो उसका रिश्ता भी है |

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

शुक्रवार, 8 जुलाई 2011

ये चंद

ये चंद सिक्के ही तो हैं, जिन्होंने मुझे ऐसा बना दिया |
मैं इतना बेदर्द तो कभी न था |

ये चंद स्वार्थ ही तो हैं , जिन्होंने मुझे ऐसा बना दिया |
मैं इतना खुदगर्ज़ तो कभी न था |

ये चंद लोग ही तो हैं , जिन्होंने मुझे ऐसा बना दिया |
मैं इतना पत्थर तो कभी न था |

ये चंद बातें ही तो हैं , जिन्होंने मुझे ऐसा बना दिया |
मैं इतना बदतर तो कभी न था |

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

बुधवार, 6 जुलाई 2011

आखिर ये "मैं" कौन है ?

रोज़ रोज़ मुझसे लड़ता है , आखिर ये "मैं" कौन है ?
बात बात में बिगड़ता है , आखिर ये "मैं" कौन है ?

हर चीज़ में अपनी राय देता , आखिर ये "मैं" कौन है ?
हरदम अहम् कि दुहाई देता , आखिर ये "मैं " कौन है ?

मेरे साथ ही क्यूँ है सटा, आखिर ये "मैं" कौन है ?
कैसे मिला मेरा पता , आखिर ये "मैं" कौन है ?

क्यूँ मैं इसकी बात सुनूँ , आखिर ये "मैं" कौन है ?
क्यूँ न मैं कोई और बनूँ , आखिर ये "मैं" कौन है ?

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

मंगलवार, 5 जुलाई 2011

What else can i dream ?

A long road to a small hut atop a hill,
anyone can knock and come at will.
A place where the rain sings and the winds scream,
What else can i ask for, what else can i dream ?

All around are the slopes mystique,
some giant, some slow, some steep.
The hills look like a fort supreme,
What else can i ask for, what else can i dream ?

Mountain breeze is the fastest friend,
knows no boundaries, knows no end.
I know that its all my team,
What else can i ask for, what else can i dream ?

Lonely walks down the tree lane,
some grow orderly, some totally insane.
And brushes by their side a youthful stream,
What else can i ask for, what else can i dream ?

The lush green pastures way too scenic,
for my forever joy, forever picnic.
And when the dew drops in the sunshine gleam,
What else can i ask for, what else can i dream ?

I am sure that there is a place like this,
made sacred by the God's kiss.
I will see this all and thank Him,
What else can i ask for, what else can i dream ?

Akshat Dabral
"निःशब्द"

रविवार, 3 जुलाई 2011

क्या किसी कि काबिलियत ,
तुल सकती है उसके इत्र कि सुगंध से ?
क्या किसी का बड़प्पन ,
दिख सकता है उसके कपड़ों के ढंग से ?

क्या किसी के वंश का अनुमान ,
लग सकता है उसके रंग से ?
क्या किसी की सोच का संकेत ,
मिल सकता है उसके संग से ?

क्या किसी की ख़ुशी की गहराई ,
दिख सकती है उसकी उमंग से ?
और किसी की दर्द की सीमा ,
दिख सकती है माथे की शिकन से ?

अक्षत डबराल
"निःशब्द"