शनिवार, 2 अप्रैल 2011

काश ...

काश ख्वाहिशों की कोई डाक होती ,
हम लिखकर ख़त डाल दिया करते |
काश सपनों की कोई आवाज़ होती ,
हम सुनकर भी जन्नत पा लिया करते |

काश ज़िन्दगी इतनी तेज़ न होती ,
हम कहीं थोड़ा रुक लिया करते |
काश फितरत इतनी सख्त न होती ,
हम कहीं थोड़ा झुक लिया करते |

काश कहीं थोड़ा जुड़ाव होता ,
हम वहीँ सच में बस लिया करते |
काश कहीं अपनी महफ़िल होती,
हम वहीँ सच में हंस लिया करते |

काश कहीं होता एक जहाँ ,
जों सही में अपना होता |
काश खुशियाँ ही होती बस अपनी ,
बाकी सब सपना होता |

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

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