ख्यालों कि सतरंगी ऊनें हैं ,
उनसे कुछ कुछ चुन लेता हूँ |
आँखों कि सलायियों में पिरोकर ,
ख़्वाबों कि स्वेटर बुन लेता हूँ |
वह उन बहुत नर्म है ,
पाक अरमानो सी गर्म है |
इसमें कई सौ रेशे हैं ,
वफ़ा है, जुनूँ है , शर्म है |
इन सबको जोड़कर , यह स्वेटर ओढ़कर ,
जब मन सोने चलता है |
चाँद कब ढलता , दिन कब चढ़ता ,
कहाँ पता चलता है ?
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
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